SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन जो जाणइ देसीओ भासाओ लक्खणाइँ धाऊ य । वय-णय-गाहा-छेयं कुवलयमालं पि सो पढउ ।।-२८१.२३ उद्योतनसूरि ने विविध भाषाओं और बोलियों के प्रयोग के लिए कुवलयमाला में पात्रों के बीच बातचीत के ऐसे प्रसंग उपस्थित किये हैं, जो उनकी चारित्रिक विशेषताओं पर तो प्रकाश डालते ही हैं, तत्कालीन भाषाओं और बोलियों के अनेक शब्द एवं अंश भी प्रस्तुत करते हैं । ग्रन्थ के कुछ प्रमुख कथोपकथनों का विवरण इस प्रकार है : ग्राममहत्तरों की बातचीत चंडसोम अपने भाई एवं वहिन की हत्या करने के बाद अग्नि में जलने जा रहा था कि कुछ युवकों ने उसे बलपूर्वक पकड़ लिया (बलिय-जुवाणेहिं सो धरित्रो (४८.१२) । कृषि और गोकुल से संबधित्त पूर्वजों की परम्परा से चले आ रहे मनु, व्यास, वाल्मीकि, मार्कण्डेय महाऋषियों के महाभारत, पुराण, गीता के श्लोकों द्वारा वृत्ति (सिलोय वित्तपण्णा) कमानेवाले सौत्रिक-पंडितों ने कहा कि तुम प्रायश्चित द्वारा पाप से मुक्त हो सकते हो (४८.१७)। चंडसोम ने जब प्रायश्चित पूछा तो एक पंडित बोला-'बिना इच्छा से किया गया पाप बिना इच्छा के ही शुद्ध हो जाता है'-'अकामेन कृतं पापं अकामेनैव शुद्धयति (४८.१०) । असम्बद्ध प्रलाप करते हुए दूसरा वोला-'प्राण-घात करने की इच्छा से न मारने पर भी कोई मर जाय तो ब्रह्महत्या नहीं लगती'-जिघांसंतं जिघांसीयान्न तेन ब्रह्मा भवेत् (४८.१९)। तीसरे ने कहा-'क्रोध में किये गये पाप में क्रोध ही अपराधी होता है'-कोपेन यत्कृतं पापं कोप एवापराध्यति (४८.२०)। चौथे ने कहा-'ब्राह्मणों से अपना पाप कह देने से जीव शुद्ध हो जायेगा'-ब्राह्मणानां निवेद्यात्मा ततः शुद्धो भविष्यति । पाँचवे ने कहाअज्ञानपूर्वक किये गये पाप में दोष नहीं लगता'-अज्ञानाद्यत्कृतं पापं तत्र दोषो न जायते (४८.२१)। इस प्रकार पूर्वापर असम्बन्धित वचनों को कहने वाले बढरभट्ट ने उसे सलाह दी कि घर की सब सम्पत्ति ब्राह्मणों को देकर तीर्थ यात्रा करने से प्रायश्चित होगा (अनुच्छेद ९५) । __ इस वार्तालाप में संस्कृत भाषा के पाँच उद्धरण प्रयुक्त हुए हैं, जो सम्भवतः जिन महाऋषियों के नाम लिये गये हैं उनकी रचनाओं के हों। दूसरा उद्धरण (जिघां०) वासिष्ठस्मृति २, १८ में उपलब्ध होता है। मथुरा के अनाथमंडप में कोढ़ियों की बातचीत मानभट मथुरा के अनाथमंडप में जब ठहरता है तो वहाँ पर स्थित कुष्ठरोगी परस्पर में बातचीत करते हैं। एक कहता है-अरे भाइयो, तुम लोग
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy