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________________ २४२ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन करना पड़ता है ।' शबर दम्पत्ति के सम्बन्ध में ऐणिका बतलाती है कि वे विद्याधर और विद्याधरी हैं। पूर्व जन्म में इनके पूर्वजों ने शबर विद्या को प्राप्त किया था। अतः उस परम्परा को कायम रखने के लिए विद्याधरों ने इस विद्या.. धरदम्पति को शाबरीविद्या प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया है। सभी विद्याधर ने विद्या की प्राप्ति हेतु इन्हें शुभकामनाएं प्रदान की हैं-सिज्झउ से विज्ज सिज्झउ से विज्ज (१३३.१६) तभी से यह दम्पत्ति शबरभेष धारण कर मौन व्रत लेकर इस विद्या की प्राप्ति में लगा हुआ है । २ इस प्रसंग से महत्व की बात यह ज्ञात होती है कि शवर-विद्या के जानकार शवर-लोग होते होंगे। उनसे इस विद्या को सीखने के लिए शबरों का रूप धारण करना आवश्यक रहा होगा । भगवती प्रज्ञप्ति-विद्या-कामगजेन्द्र को जव विद्याधर कन्यायें ले जाने लगी तो उन्होंने उसे बताया कि वे यह नहीं जानती थीं कि कामगजेन्द्र कहाँ रहता है तथा उसकी नगरी कहाँ है ? अत: इसको जानने के लिए उन्होंने भगवती प्रज्ञप्ति नाम की विद्या का आह्वान किया। उसके आने पर उससे कामगजेन्द्र का पता पूछा और तदनुसार यहाँ तक पहुँची। जैन साहित्य में प्रज्ञप्ति-विद्या के अनेक उल्लेख मिलते हैं। कथासरित्सागर में भी इसका उल्लेख है। कुव० में ७२ कलाओं के प्रसंग में विभिन्न विद्याओं के अतिरिक्त कुछ ऐसे विषयों को भी पढ़ाये जाने के उल्लेख हैं, जो जीवन में अधिक व्यावहारिक तथा उपयोगी थे। साथ ही जाति एवं वर्ण के अनुकूल भी । यथा चाणक्यशास्त्र का अध्ययन-वाराणसी नगरी में वहाँ के युवक जन अन्य कला-कलापों के साथ चाणक्यशास्त्र को भी सोखते थे। डा० अग्रवाल एवं उपाध्ये ने चाणक्य शास्त्र का अर्थ चाणक्य अथवा कौटिल्य का अर्थशास्त्र किया है।' अर्थशास्त्र के अतिरिक्त चाणक्यनीति भी इसमें सम्मिलित रही हो, यह भो संभव है। १. इमाणं साबरोओ विज्जाओ"असिहारएण बंभ-चरिया-विहाणेण एत्थ वियरइ ति-१३२.४. २. तओ ते दुवे वि पुरिसो महिला य इहेव ठिया पडिवण्ण-सबर-वेस त्ति -वही १३३.१७.१८. ३. इमस्स य अत्थस्स जाणणत्थं आहूया भगवई पण्णत्ति णाम विज्जा–कुव० २३६-२२. ४. ज०-जै० भा० स०, पृ० २६४, ३४६ आदि । ५. मोनियरविलियम्स संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी । ६. सिक्खविज्जंति जुवाणा कला कलावई चाणक्क-सत्थई च। -कुव० ५६.२८, ७. उ०-कुव० इं०, पृ० १३३.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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