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शिक्षा एवं साहित्य
२४१ स्वप्न-निमित्त-स्वप्नदर्शन के आधार पर शुभाशुभ-फल का प्रतिपादन करना स्वप्ननिमित्त है। कुवलयमालाकहा में रानी प्रियंगुश्यामा को कुवलयचन्द्र के जन्म के पूर्व स्वप्न आता है। सुबह वह राजा को निवेदन करती है। राजा मन्त्रियों से इस स्वप्न का फल निकालने को कहता है। कुवलय० में स्वप्न-दर्शन की परम्परा प्राचीन साहित्य के ही अनुरूप है। किसी भी महापुरुष के जन्म के पूर्व उसकी माता को इस प्रकार के स्वप्न दिखायी देने की बात अनेक जगह कही गयी है। किन्तु यहाँ चन्द्रमा का कमलपुष्पों की माला के द्वारा आलिंगन करते हुए दिखायी देना-कुवलयमालाए दढं अवगूढं चंदिमा-णाहं (१६.९) स्वप्नदर्शन की परम्परा में विशेष अर्थ रखता है। स्वप्नदर्शन-शास्त्र के पंडित के लिए यह नवीन वात थी। इसलिए उसने स्वप्नफल बतलाते हुए यही कहा कि राजन् ! कुवलयमाला के दर्शन से रानी को एक पुत्री की प्राप्ति होनी चाहिये ।' लेकिन राजा की सभा में वृहस्पति जैसे विद्वान् भी उपस्थित थे। उन्हें यह स्वप्नफल उचित नहीं लगा। अतः उन्होंने इसे अधिक स्पष्ट करते हुए कहा-राजन् ! यदि केवल कुवलयमाला के ही दर्शन हुए होते तो स्वप्नशास्त्र के ज्ञाता का यह कथन कि आपको पुत्री की प्राप्ति होगी, ठोक था। किन्तु महारानी ने स्वप्न में कुवलयमाला द्वारा चन्द्रमा को आलिंगन करते हुए देखा है अतः इसका अर्थ यह होना चाहिये कि आपके होने वाले पुत्र को कुवलयमाला की तरह सर्वजनमनोहरा प्रियतमा की प्राप्ति होगी (१७.३.५) । विभिन्न विद्याएँ
__ कुव० में शिक्षणीय विषयों के उक्त प्रसंगों के अतिरिक्त अनेक विद्याओं के भी संक्षेप में उल्लेख हुए हैं। उनमें शाबरीविद्या प्रमुख है । यह जादू-टोने से संवन्धित प्रतीत होती है। जब वनसुन्दरी ऐणिका से कुवलयचन्द्र की भेंट होती है तो वहां वह एक शबर-दम्पत्ति के दर्शन करता है। पूछने पर ज्ञात होता है कि यह शवर-दम्पत्ति शावरी-विद्या की साधना के लिए प्रयत्नशील है। ऐणिका इस प्रसंग में वतलाती है कि विद्याधर भगवान् ऋषभदेव की स्तुति करके अनेक विद्यानों की साधना करते हैं। इन विद्याओं को प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के उपाय हैं-ताणं च कप्पा साहणोवाया (१३२.१) । किन्हीं विद्याओं को काल की मर्यादा से प्राप्त किया जाता है । तथा कुछ विद्यायें अग्नि, वांस की भेरी, नगर की पिरोलों, महा अटवियों, पर्वतों आदि में कापालिक. चण्डाल, राक्षस, वन्दर, भील का भेष धारण कर प्राप्त की जाती हैं (१३२.१, ३)।
महाशाबरी विद्या-उक्त विद्यानों में से शाबरी-विद्या अधिक कठिन है। इसकी प्राप्ति के लिए शवर (भील) का भेष धारण कर पत्नी के साथ जंगलों में इधर-उधर घूमना होता है। असिधारा के समान अखंड-ब्रह्मचर्य का पालन १. तओ भणियं सुमिण-सत्थ-पाठएहिं 'देव, तेण एसा वि तुह दुइया धूया भविस्सइ'
त्ति ।-कुव० १७.३.