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________________ २३२ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन जैन साहित्य में जहाँ कहीं भी अध्ययनीय विषयों की चर्चा हुई है वहाँ पर कलाओं का वर्णन विस्तार से हुआ है। १. ज्ञाता धर्मकथा २. समवायाांगसूत्र ३. औपपातिक सूत्र ४. राजप्रश्नीयसूत्र' ५. कल्पसूत्र ६. विपाकसूत्र ७. अंगशास्त्र ८. पृथ्वीचन्द्र चरित ९. समरादित्यकथा १०. कुवलयमाला ११. प्रवन्धकोश १२. प्राकृतसूक्तरत्नमालाआदि ग्रन्थों में ७२ कलाओं एवं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि में ६४ कलाओं का उल्लेख मिलता है। हरिभद्रसूरि ने यद्यपि ८९ कलायें गिनायी हैं, परन्तु जैन-साहित्य में सामान्य रूप से पुरुषों के लिये ७२-वावत्तरिकलापंडिया वि पुरिसा'-एवं स्त्रियों के लिये ६४ कलाओं का विधान किया गया है। णायकुमारचरिउ एवं यशस्तिलकचम्पू आदि कुछ ग्रंथों में यद्यपि कलाओं की संख्या नहीं गिनायो गयी फिर भी प्राय: सभी कलाओं का प्रकारान्तर से वर्णन किया गया है। कुवलयमाला में ७२ कलायें प्रायः हर जगह कलाओं का वर्णन राजकुमारों के विद्याभ्यास के समय किया गया है । उद्योतनसूरि ने भी इसो अवसर को उपयुक्त चुना है । कुवलयमाला में जब कुवलयचन्द्र अपना अध्ययन समाप्त कर आचार्य के साथ राजधानी वापिस लौटते हैं तो उनके पिता महाराज दृढ़वर्मन् प्राचार्य से पूछते हैंउवज्झाय, किं अभिगो कला-कलावो कुमारेण ण वा (२१.२०) । प्रथम तो आचार्य ने यह कह कर कि 'कुमार ने एक भी कला को ग्रहण नहीं किया 'राजा को विस्मय में डाल दिया। किन्तु बाद में स्वयंवरा कलाओं ने स्वयं कुमार को ग्रहण कर लिया है' (२१.२९) कहकर राजा को हर्षित कर दिया और उनके पुनः पूछने पर निम्न ७२ कलाओं का आचार्य ने परिचय दिया :-१. आलेख्य, २. नाट्य, ३. ज्योतिष (जोइस), ४. गणित, ५. रत्नपरीक्षा (गुणा य रयणाणं), ६. व्याकरण, ७. वेद-श्रुति, ८. गान्धर्वकला, ६. गंध-युक्ति (गंध-जुत्ती), १०. सांख्य (संखं), ११. योग (जोगो), १२. वर्षा या वर्ष का परिज्ञान (वारिस-गुणा), १३. होरा, १४. न्यायशास्त्र (हेउ-सत्थं), १५. छन्द, १६. वृत्ति, १७. निरुक्तं, १८. स्वप्नशास्त्र (सुमिणय-सत्त्थं), १६. शकुनज्ञान (सउण-जाणं), २०. आयुर्वेद (आउज्जाणं) २१. अश्वविद्या (तुरयाण-लक्खणं), २२. गजविद्या (हत्थीणं लक्खणं) २३. वास्तु-परीक्षा (वत्थु), २४. वस्त्रक्रीडा (वहा खेड्ड) २५. पातालसिद्धि (गुहागयं), २६. इन्द्रजाल, २७. हाथोदांत की कला (दंत-कयं), २८. तांबे की कला (तंब-कयं), २९. लेप्यकर्म, ३०. विनियोग (प्रशासन-कला), ३१. काव्य, ३२. पत्रच्छेद, ३३. फूल उगाने की कला (फुल्ल-विही), ३४. सिंचन कर्म (अल्ल-कम्म), ३५. धातुवाद, ३६ पांसा खेलना (अक्खाइया), ३७. तन्त्र-विद्या (तंताई), १. ज०-जै० आ० स०, पृ० २९६. २. पा० म०, पृ० २३०.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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