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शिक्षा एवं साहित्य कुवलयचन्द्र को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि विजयपुरी में एक साथ इन सभी दर्शनों की पढ़ाई होतो है (१५१.४) । व्याकरण एवं दर्शन के इन विषयों के अतिरिक्त उस मठ में अन्य जिन विषयों का अध्ययन-अध्यापन होता था ग्रन्थकार ने उनका भी उल्लेख किया। निमित्त, मन्त्र, योग, अंजन, कालाजादू (कुहयं), धातुवाद, यक्षिणी-सिद्धि, युद्ध विज्ञान (खत्तं), योगमाला, मन्त्रमाला, गारुड़विद्या, ज्योतिष, रस-बन्ध, रसायण, छन्द, वृत्ति, निरुक्त, पत्रच्छेद, इन्द्रजाल, दन्तकृत, लेप्पकृत, चित्रकला, कणककर्म, विषगरतन्त्र भूततत्र आदि शताधिक शास्त्रों का पारायण उस मठ में छात्र कर रहे थे-सयाइं सत्थाणि सुव्वंति (१५१.७, १०)।
__ कुछ छात्र वहां ऐसे रहते थे जो केवल मूलरूप में वेदों का ही पाठ करते थे-केवल वेय-पाठ-मूलबुद्धि-वित्थरा चट्ठा (१५१.१२)। किन्तु शारीरिक एवं चारित्रिक दृष्टि से वे हीन थे (१५१.१४, १६)। मठ में इतने विषयों का अध्ययन-अध्यापन कार्य देखकर कुमार को कहना पड़ा कि धन्य हैं यहाँ के उपाध्याय, जो ७२ कलाओं और ६४ विज्ञानों में निपुण हैं ।' ग्रन्थ में अन्यत्र भी उद्योतनसूरि ने ७२ कलाओं का विस्तृत वर्णन किया है। इसकी संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार हैभारतीय साहित्य में कलाएं
___ अध्ययनीय विषयों के अन्तर्गत पुरूषों एवं स्त्रियों के लिए कलाओं के परिज्ञान का उल्लेख भारतीय साहित्य के अनेक ग्रन्थों में मिलता है । 'कला' शब्द का प्रयोग शायद सबसे पहले भरत के नाट्यशास्त्र में ही मिलता है। बाद में कामसूत्र और शुक्रनीति आदि में इसका वर्णन किया गया है। प्रमुखरूप से रामायण, महाभारत (१४.८६,३), शुक्रनीति, वाक्यपदीय, कलाविलास (क्षेमेन्द्र), दशकुमारचरित, ब्रह्माण्डपुराण, भागवतपुराण की टीका, महिम्नस्तोत्र टीका, श्रृंगारप्रकाश, काव्यादर्श, शैवतनय, सप्तशतीटीका, सौभाग्यभास्कर आदि हिन्दू ग्रन्थों में कला के उल्लेख प्राप्त होते हैं। प्रायः सभी में ६४ कलाएं ही वर्णित हैं। केवल क्षेमेन्द्र ने कलाविलास में कला के भेद-प्रभेदों की चर्चा की है और उनकी संख्या १०० से भी अधिक गिनायी है।
बौद्धग्रंथों में ललितविस्तर (पृ० १५६) में प्रमुख रूप से विविध कलाओं का वर्णन है। इसमें कलाओं की संख्या ८६ गिनायी गई है। दिव्यावदान में (पृ० ५८, १०० एवं ३९१) भी कलाओं के उल्लेख हैं ।
१. अहो साहु साहु-उवज्झाया णं बहत्तरिकला-कुसला चडसठ्ठि-विण्णाणभंतरा य
. एए त्ति । १५१.११ २. 'न तज्जानं न तच्छित्यं न सा विद्या न सा कला'-नाट्यशास्त्र, १.११६. ३. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड २, पृ० ३७८. ४. भारतकोश, भाग ३, सुरेशचन्द्र वन्द्योपाध्याय,