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शिक्षा एवं साहित्य
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३८. पुष्प सज्जा ( पुप्फ- सयडी), ३८. शब्द - ज्ञान ( श्रक्खर ) ४०. शास्त्र -ज्ञान (समय), निघन्दु, ४२. रामायण, ४३. महाभारत, ४४. कृष्ण लोह-कर्म ( कालायस - कम्मं ), ४५. छींक - निर्णय ( सेक्क (सिक्क) निष्णो ), ४६. स्वर्णकर्म, ४७. चित्रकला (चित्त- कला - जुत्तीश्रो ), ४८. द्यूत, ४६. यन्त्र- प्रयोग ( जंतपोगो), ५०. वाणिज्य, ५१. हार-ग्रन्थन ( मालाइत्तणं), ५२. वस्त्र बनाने की कला ( वत्थ - कम्मं ), ५३. आभूषण - कला ( आलंकारिय-कम्मं), ५४. उपनिषद् ( उपणिस), ५५. प्रश्नोत्तर-तन्त्र ( पण्णयर - तंतं), ५६. नाटक - योग (सध्वे गाडयजोगा ), ५७. कथा - निबन्ध, ५८. धनुर्वेद, ५८. देशी भाषा - ज्ञान ( देसीओ), ६०. पाकशास्त्र ( सूव-सत्थं ), ६१. आरोहण (आरुहयं ), ६२. लोक - वार्ता, ६३. अव-स्वापिनी विद्या ( ओसोवण ), ६४. ताला खोलने की विद्या (तालुग्घा - डणी), ६५. माया-कपट, ६७. मूलकर्म ६८. लावण्ययुद्ध, ६६. मुगां-युद्ध ७०. शयनासन व्यवस्था ( सयणासणसंविहाणाई), ७१. दान एवं दक्षिण्य तथा ७२. मृदु एवं मधुरता ( मउयत्तणं महुरया ) ।
उपर्युक्त ७२ कलाओं का वर्गीकरण प्राकृत कुवलयमाला के गुजराती अनुवादक आचार्य हेमसागर सूरि ने अपनी सुविधानुसार किया है । किन्तु इनमें से कुछ कलाएं ऐसी हैं जिनका भेदकर उन्हें अलग-अलग किया जाना चाहिये और कुछ कलाओं को एक कला के अन्तर्गत हो समाहित होना चाहिए था । '
७२ कलाओं में अधिकांश कलाओं का अर्थ स्पष्ट है । किन्तु कुछ कलाएं ऐसी हैं जिनका अर्थ पूर्णतया समझ में नहीं आता । और वह तब तक नहीं आ सकता जब तक तत्कालीन परिवेश को ध्यान में रखकर न सोचा जाय । कलाओं के अर्थ निश्चय में कुछ मतभेद भी हो सकता है, कुछ नवीनता भी । निम्नकलाओं का वैशिष्ट्य द्रष्टव्य है :
आयुज्जा - इससे आपाततः आयुधज्ञान का बोध हो सकता है किन्तु इसका वास्तविक शब्दार्थ है - आयुज्ञान | आयुर्वेद की शिक्षा |
वत्युं - इसका अर्थ विद्वान् अनुवादक ने 'वस्तुपरीक्षा' किया है, परन्तु वस्तुकला से इसका सम्बन्ध होना चाहिए। क्योंकि कलाओं के इस वर्णन में अन्यत्र कही वास्तुकला का उल्लेख नहीं है, जब कि ७२ कलाओं में वह सबसे प्रमुख कला मानी गयी है । अंगशास्त्र एवं समरादित्यकथा में क्रमशः वत्थुविज्जा एवं वत्थुगाव का उल्लेख हुआ है, जिसका अर्थ है -- गृहनिर्माण को जानने एवं बनाने की कला । अतः उक्त 'वत्थु' को स्थापत्यकला से ही सम्बन्धित होना चाहिए ।
१.
द्रष्टव्य - लेखक का लेख 'कुव० में वर्णित ७२ कलायें : एक अध्ययन' - मरुधर केसरी अभिनन्दन ग्रन्थ |
२. अमरकोश, १.५.
३. अंगशास्त्र, पृ० २६.
४.
ह० - स० क० अष्टम भव, पृ० ७३४.