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________________ १९२ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन परसियन गल्फ के मोती मिलते थे। यह व्यापारी वहाँ अपने वस्त्र बेचकर गजदन्त का सामान और मोती ले आया। बब्बरकुल अफ्रीका के उत्तर-पश्चिमी तट पर लालसागर के सामने स्थित माना जाता है। एक व्यापारी पलाशपुष्प लेकर स्वर्णद्वीप गया और वहाँ से स्वर्ण भरकर लाया। यदि यह स्वर्णद्वीप सुमात्रा है तो उद्धोतन के समय वहाँ श्रीविजय का राज्य था,' जो भारतीय राजवंशो से सम्बन्धित था। उसके समय भारत का व्यापारिक सम्बन्ध सुमात्रा से काफी बढ़ रहा था। उद्योतन द्वारा प्रस्तुत इस सन्दर्भ से यह बात और पुष्ट होती है। पलाशपुष्प आयुवंद के अनुसार अनेक प्रकार के उपचारों में काम आता है। सुमात्रा में इसकी अधिक मांग रही होगी। स्वर्णद्वीप सोने की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध था। प्राचीन समय में दक्षिण-पूर्व एशिया के सभी देशों के द्वीप और प्रायद्वीप के लिए स्वर्णद्वीप शब्द प्रयुक्त होता था। एक अन्य व्यापारी भैसों और नील गायों को लेकर चीन एवं महाचीन गया और वहाँ से गंगापटी तथा नेत्रपट लाया। यह बहुत महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ है। उद्योतन के समय तक भारत में चीनी शिल्क कई रंगों में एवं श्वेतशिल्क भी आने लगी थी। गंगापटी चीनी श्वेतशिल्क है, जिसे भारत में चीनांशुक तथा गंगाजुल कहा जाता था तथा नेत्रपट रंगीन शिल्क के लिए नया नाम था।' वस्त्रों के परिचय के प्रसंग में इन पर विस्तार से विचार किया गया है। इस सन्दर्भ से यह ज्ञात होता है कि भारत और चीन के बीच सामुद्रिक आवागमन में वृद्धि हो चली थी। हरिभद्र की समराइच्चकहा के वाद चीन और भारत के व्यापारिक सम्बन्ध का कुवलयमाला का उक्त सन्दर्भ प्रथम साहित्यिक उल्लेख है। ___ महिलाराज्य को पुरुष ले जानेवाला व्यापारी वहाँ से स्वर्ण भर कर लाता है । महिलाराज्य नाम के अनेक स्थान भारतीय साहित्य में प्राप्त होते हैं । सम्भवतः उस महिलाराज्य में पुरुष की संख्या महिलाओं की अपेक्षा बहुत कम रही होगी इसीलिए वहाँ सोने के तोल पर पुरुषों को खरीद लिया जाता था। रत्नद्वीप की यात्रा करनेवाले व्यापारी के अनुभवों से ज्ञात होता है कि समुद्री-यात्रा कितनी कठिन थी। हमेशा प्राणों का भय बना रहता था। जिसे अपना जीवन प्रिय न हो वही रत्नद्वीप की यात्रा कर सकता था-सुंदरो जस्स जीयं ना वल्लहं-अहो दुग्गमं रयणदीयं (६६.६, ९) । उक्त विवरण से आयात-निर्यात की निम्नवस्तुओं का पता चलता है :अश्व, गजपोत, सुपारी, मुक्ताफल, चमर, शंख, नेत्रपट, गंगापटी, अन्य-वस्त्र, गजदंत का सामान, मोती, पलाशपुष्प, स्वर्ण, महिष, नीलगाय, पुरुष, नीम के पत्ते एवं रत्न । १. उ०-कु० इ०., पृ० ११८ पर डा० अग्रवाल का नोट । २. समराइच्चकहा, धरण की कथा । ३. इण्ट्रो० कुव० में डा० अग्रवाल का नोट । ४. मो०-सा०, पृ० १९६.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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