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वाणिज्य एवं व्यापार
१९१ वहाँ से गंगापटी एवं नेत्रपट नामक विशिष्ट चीनी वस्त्र लाया (२) दूसरे ने कहा--मैं पुरुषों को लेकर महिलाराज्य गया। उनके बदले में बराबर का सोना लाया (३) । अन्य व्यापारी ने कहा--मैं नीम के पत्ते लेकर रत्नद्वीप गया और वहाँ से लाभ में रत्न लाया (४)।
उद्द्योतनसूरि द्वारा प्रस्तुत यह विस्तृत वर्णन प्राचीन भारत के व्यापार का विकसित रूप उपस्थित करता है । भारत का विदेशों के साथ घनिष्ट व्यापारिक सम्बन्ध इस वर्णन से पुष्ट होता है। इस सामग्री की उपयोगिता प्राचीन भारतीय वाणिज्य के लिए जितनी है, उससे कहीं अधिक विदेशी व्यापार में प्रयुक्त आयात-निर्यात की वस्तुओं की जानकारी के लिए है। व्यापारी-मण्डल के इस प्रसंग का विस्तृत अध्ययन डा० बुद्धप्रकाश ने अपने लेख-'एन एर्थ सेन्चुरी इण्डियन डाकुमेन्ट प्रान इन्टरनेशनल ट्रेड' में किया है।'
उपर्युक्त विवरण को जाँचने पर ज्ञात होता है कि कोशल में विशिष्ट प्रकार के हाथी पाये जाते थे, किन्तु वहाँ घोड़े बहुत अच्छो किस्म के नहीं होते थे। इसलिए जब बाहरी व्यापारी घोड़े लेकर वहाँ पहुँचा तो वहाँ के राजा ने गजपोतों (हाथियों के बच्चे) के बदले में घोड़े खरीद लिये । व्यापारी लोग दुहरे मुनाफे के लिए ऐसी सामग्रियाँ अपने साथ ले जाते थे जिससे उन्हें दोनों ओर से लाभ मिले । उत्तरापथ को जानेवाले व्यापारी ने अपने साथ सुपारियाँ ली, जो कि वहाँ नहीं होती थीं और वहाँ से घोड़े खरोदे, जो उसके अपने क्षेत्र में नहीं होते थे।
इसी प्रकार एक व्यापारी मोती लेकर पूर्वदेश सम्भवतया आसाम गया। हिमालय की तराई में पाये जानेवाले चमरीमगों की पूछों से बनाये जानेवाले चँवर वहाँ अच्छे सस्ते मिलते रहे होंगे, जिन्हें वह अपने देश के लिए खरीद कर ले आया।
__ एक व्यापारी वारवई गया। समुद्री सतह पर वहाँ शंख बहुतायत में और अच्छो किस्म के मिलते थे इसलिए वह वहाँ से शंख लाया। किन्तु इस व्यापारी ने यह नहीं बतलाया कि वह द्वारावती क्या लेकर गया था। इससे ज्ञात होता है कि व्यापारी कभी-कभो प्रसिद्ध वस्तुओं को खरीदने नगदी लेकर भो जाते रहे होंगे। वारवइ की पहचान डा० वी० एस० अग्रवाल ने वर्तमान कंराची के निकट स्थित वरवरोकोन से की है, किन्तु डा० बुद्धप्रकाश ने इसकी पहचान दक्षिणभारत में स्थित बेरूवारी से की है, जो प्राचीनकाल में व्यापार का बड़ा केन्द्र था और जहाँ के शंख बहुत प्रसिद्ध थे।
एक व्यापारी बब्बरकुल वस्त्र लेकर गया। यह एक प्रसिद्ध नगर था, जहाँ अफ्रीकी विशिष्ट हाथीदाँत का बहुमूल्य सामान तथा बहुत अच्छी किस्म के
१. द्रष्टव्य-बुटूक०म०, दिसम्बर १९७०.