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वाणिज्य एवं व्यापार
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प्राचीन भारतीय व्यापारिक क्षेत्र में सुगंधित द्रव्यों एवं वस्त्रों का निर्यात तथा स्वर्ण और रत्नों का आयात प्रायः होता रहता था । अश्व एवं गजपोत, महिष तथा नीलगाय सम्भवतः व्यापार में तब सम्मिलित हुए होंगे जब यातायात के साधनों में विकास एवं पथ-पद्धति में विस्तार हो गया होगा । आठवीं सदी इस बात के लिए प्रसिद्ध कही जा सकती है ।
प्रसिद्ध मण्डियाँ
कुवलयमाला में आठवीं सदी की प्रसिद्ध तीन मण्डियों का वर्णन प्राप्त होता है : - ( १ ) सोपारक, (२) प्रतिष्ठान एवं (३) विजयपुरी । इनके वर्णन में तत्कालीन व्यापार से सम्बन्धित अनेक तथ्य प्राप्त होते है ।
सोपारक - प्राचीन भारत में सोपारक नगर स्थानीय एवं विदेशी व्यापार बहुत बड़ा केन्द्र था । बृहत्कल्पभाष्य (१.२५०६ ) एवं पेरिप्लस के अनुसार यहाँ पर सुदूर देशों के व्यापारी आते थे तथा बहुत से व्यापारियों (निगम) का यह निवास स्थान था । कुव० के वर्णन से ये दोनों बातें प्रमाणित हो जाती हैं । सोपारक स्थल- व्यापार के केन्द्र के अतिरिक्त पश्चिमी समुद्रतट का विशिष्ट बन्दरगाह माना जाता था । कुव० में यहाँ से रत्नद्वीप की समुद्री यात्रा के प्रारम्भ होने का विस्तृत वर्णन है, जिसके सम्बन्ध में जल-यात्रा के प्रसंग में विचार किया जायेगा ।
प्रतिष्ठान मण्डी - प्रतिष्ठान मण्डी का प्राचीन भारतीय व्यापार के क्षेत्र में प्रमुख स्थान था । आठवीं सदी में वाराणसी से व्यापारी धन कमाने के लिए प्रतिष्ठान आते थे । यद्यपि रास्ते में उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था । यह नगरी अनेक धन-धान्य एवं रत्नों से युक्त थी । इस मण्डी में अनेक प्रकार के वाणिज्य एवं पेशे होते थे, जिनसे धन कमाया जाता था ।
जयश्री - मण्डी - उद्योतन ने दक्षिणभारत की एक और प्रमुख मण्डी का वर्णन किया है । दक्षिण समुद्र के किनारे जयश्री नाम की महानगरी थी। इस नगरी का विपणिमार्ग काफी समृद्ध था । व्यापारियों की दुकानें अलग थीं, रहने के निवासस्थान अलग ।" इस मण्डी से यवनद्वीप को जाने के लिए समुद्री - मार्ग था । जब सागरदत्त ने व्यापार करने समुद्र पार जाना चाहा तो जयश्रीमण्डी के व्यापारी ने समुद्र-पार में बिकने वाली वस्तुओं का संग्रह करना प्रारम्भ
मो० - सा० ए०, १७२.
पेरिप्लस, पृ० ४३.
द्रष्टव्य —— गो० इ० ला० इ०, पृ० १४८.
अणेय - घण घण्ण-रयण-संकुले महासग्ग-णयर सरिसे णाणा वाणिज्जाईं कयाई,
पेसणारं च करेमाणेहिं । - कुव० ५७.२९.
५. वणिएण तालियं आमणं, पयट्टो घरं, १०५.१६.
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