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राजनैतिक जीवन
१६७ का अवसर मिल जाता था । इससे हर वर्ण और व्यवसाय के लोग जमीदार होते जा रहे थे।
उद्द्योतनसूरि ने विभिन्न प्रसंगों में इन राजकर्मचारियों व अधिकारियों का उल्लेख किया है :
वेत्रलताप्रतिहारी (९.२०), द्वारपाली (९.२५, ६०.४), प्रतिहारी (१८.१, १८.२४), महावीर (१६.१९), महासेनापति (१६.२१), महापुरोहित (१६.२१), वारविलासिनी (१४१.१७), पौरजन (१७.११), महावत-मण्डली (१८.२२), अन्तःपुर महत्तरिका (११.१८), कन्या-अन्तःपुररक्षिका (१६१.२६), कन्या-अन्त:पुरपालक (१६८.१५), बासघर की प्रतिहारी (१४१.१४), जामइल्ल (पहरेदार) (८४.२४, १३५.१८), सेनापति (१४६.४), हस्तिपालक (१५५.११), लेखवाह (१८०.१४), पुरमहल्ल (१८३.४), नयरमहल्ल (१७२.३१, २४७. ३,४), महाधम्मव्वहार (१७३.१०), महासामन्त (१७१.८), महानरेन्द्र, सव्वकुलजुण्णमहत्तराणं (१७१.४), दंडवासिक (२४७.१०), अंगरक्षक (८४.२४), सव्वाहियारिया (२०८.२७), बाह्य उद्यानपालक (३२.१८), वेसविलया (जेल की प्रतिहारी (५९.३०), पाडहिओ (२०३.७) इत्यादि।
प्राचीन भारत की प्रशासन-व्यवस्था पर कवलयमाला के इन अधिकारियों और कर्मचारियों के विशेष अध्ययन से नवीन प्रकाश पड़ सकता है। डा० दशरथ शर्मा ने इनमें से कुछ अधिकारियों के पद एवं कार्य के सम्बन्ध में विचार किया है। महापुरोहित राजा को धार्मिक कार्यों में सलाह एवं सहयोग देता था। महावैद्य राजा एवं उसके परिवार का विशेष चिकित्सक था। प्रधानमंत्री को महामंत्री कहा जाता था तथा उसका पद प्रतिष्ठापूर्ण और परम्परागत होता था। व्यावहारिन् न्यायिक कार्यों का अधिष्ठाता एवं राजकीय सलाहकार होता था।
कुवलयमाला के वर्णन प्रसंगों से भी इन कर्मचारियों के स्वरूप एवं कार्य का पता चलता है। वारविलासिनियाँ विभिन्न उत्सवों पर नृत्य किया करती थीं। अन्तःपुरमहत्तरिका रानियों की संरक्षिका होती थी तथा अन्तःपुर से बाहर जाकर राजकीय मेहमानों के स्वागत आदि की व्यवस्था करती थीं। पुरमहल्ल और नगरमहल्ल शब्द नगर-प्रमुख के लिए प्रयुक्त हुए हैं। दंडवासिक नगर-रक्षा में तैनात राजकीय अधिकारी होता था, जिससे राजा प्रजा की कुशलता आदि की जानकारी प्राप्त करता था। इन अधिकारियों के उल्लेख से यह स्पष्ट है कि इस समय का प्रशासन पर्याप्त व्यवस्थित और विस्तृत हो गया था। अतः विभिन्न कार्यों के लिए पृथक्-पृथक् अधिकारी नियुक्त किये जाने लगे थे।
द्रष्टव्य-'द जेनिसस एण्ड करेक्टर आफ लेन्डेड अरस्ट्रोक्रेसी इन इंशियण्ट इण्डिया' नामक डा० बुद्ध प्रकाश का लेख-जर्नल आफ द सोसल एण्ड इकानामिक हिस्ट्री आफ द ओरियण्ट, १९७१.