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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन है (५०-५१) । उद्योतनसूरि ने एक प्रसंग में कहा भी है जिस प्रकार राजा कुपित होने पर दिये हुए राज्य आदि को फिर छीन लेता है, उसी प्रकार ये देवता शुभ एवं अशुभ फलों को देते हैं।' राजाओं की प्रभुता एवं सार्वभौमिकता गुप्तयुग के बाद इस समय भी विद्यमान थी। राजा दृढवर्मन् की 'महाराजाधिराज' एवं 'परमेश्वर' उपाधि का उल्लेख ग्रन्थकार ने किया है (१५४.३२) तथा विजयपुरी के राजा विजयसेन के लिए 'मकरध्वज महाराजाधिराज' विशेषण का प्रयोग किया है (१६६.३) । इनसे भी उनके प्रभुत्व का पता चलता है ।
कुव० में राजा दढ़वर्मन् के वर्णन के प्रसंग से ज्ञात होता है कि राजा का अधिकांश समय विद्वानों की संगति और राजकीय विनोदों के बीच व्यतीत होता था (१७.६, ७) तथा राजकाज की देखरेख प्रधान अमात्य एवं मन्त्री-परिषद के पूर्ण सहयोग से की जाती थी। महाकवि वाण ने भी राजा शूद्रक के वर्णन के प्रसंग में इसी प्रकार की सामग्री प्रस्तुत की है । गुप्तकालीन राजाओं का जीवन कला, साहित्य और शासन का संगम बन गया था ।
___ कुव० में मन्त्रि-परिषद का कुछ विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। आस्थानमंडप में मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों के साथ राजा बैठता था (६.१८) । कोई प्रश्न उपस्थित होने पर वृहस्पति सदृश मन्त्रियों से सलाह लेता था-भो-भो सुरगुरुप्पमुहा मंतिणो, भणह-(१०.२४) । मन्त्रियों को स्वतन्त्र विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता थी। राजा मन्त्रियों की सलाह एवं उनकी विमलबुद्धि की प्रशंसा करता था (१३.२६) । अपने कार्य की उन्हें भी सूचना देता था (१५.१९)। दरबार में महासामन्तों की अपेक्षा मन्त्रियों को प्रमुख स्थान प्राप्त था (१६. १९) ।
उद्द्योतनसूरि ने मन्त्रिपरिषद के लिए 'वासव-सभा' शब्द का प्रयोग किया है, जो राजा को सलाह देती थी तथा जिसमें सभी विषयों के जानकार मन्त्री सदस्य होते थे (१६.२८) । अन्य साक्ष्यों से पता चलता है कि गुप्त सम्राटों के समय मंत्रिपरिषद् और उसके अध्यक्ष प्रधानमन्त्री के पद का गौरव पूर्व की भांति फिर उभर आया था। बाण के उल्लेखों से इसका सक्रिय अस्तित्व प्रमाणित होता है। वही स्थिति उद्योतन के समय में भी बनी रही होगी।
___ मानभट एवं जुण्णठक्कुर की कथा से ज्ञात होता है कि तत्कालीन राजनैतिक-जीवन में जमींदारी एक प्रथा का रूप ले रही थी। किसी न किसी रूप में भूमि-सम्बन्धी अधिकार प्राप्त कर लेने पर लोगों के लिए प्रशासनिक और सैनिक जीवन का मार्ग खुल जाता था और रियासतें तथा राजवंश कायम करने १. जइ णरवइणो कुविया रज्जादी-दिग्णयं पुण हरंति ।
इय तह देवा एए सुहमसुहं व फलं देति ॥ -कुव० २५७.४. २. बुद्धप्रकाश-एशिया के सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास की रूपरेखा,
पृ० १४८.४९.