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________________ परिच्छेद छह राजनैतिक-जीवन उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में सामान्यतया अभिजात समाज का चित्रण किया है। प्रसंगवश अनेक राजाओं के दरबारों एवं उनके रहन-सहन का भी उल्लेख किया है, किन्तु राजनैतिक-जीवन की प्रभूत सामग्री इस ग्रन्थ में नहीं है। अतः इस सामाजिक-जीवन वाले अध्याय में ही कुव० में उपलब्ध उन सन्दर्भो का संक्षिप्त विवेचन दे देना उपयुक्त प्रतीत होता है, जो तत्कालीन राजनैतिक-जीवन से सम्बन्धित हैं। राजा दढ़वर्मन् के प्रसंग से ज्ञात होता है कि पड़ोसी राज्यों में युद्ध होते रहते थे । सेनापति युद्ध जीतकर विजित सामग्री अपने राजा को आकर सौंप देते थे। राजा महेन्द्र की कथा से ज्ञात होता है कि समीप के सन्निवेश की कमजोरी का फायदा उठाकर सेना के घेरा द्वारा वहाँ के राजा को जीतने का प्रयत्न किया जाता था (९९.१५-१६) । असहाय हो जाने पर रानी एवं राजकुमार शत्र के हाथ में पड़ने के बजाय भाग जाना श्रेयस्कर समझते थे (११-२०)। • राजा और प्रजा के बीच सम्बन्ध अच्छे होते थे। प्रजा को यदि कोई परेशानी होती थी तो वह राजा से निवेदन करती थी। राजा उसका निवारण करता था। राजकुमार मोहदत्त द्वारा श्रेष्ठी की कन्या को गर्भवती कर देने की शिकायत जब राजा के पास पहुँची, तो उसने अपने पुत्र को अपराधी पाकर प्राणदण्ड का आदेश दे दिया (७५.१-६)। एक कथा में नगरवासी जब चोर के उपद्रव से परेशान थे तो स्वयं राजा के पुत्र वैरगुप्त ने अनेक कष्ट झेलकर उससे मुक्ति दिलवायी (२४७.१-१२)। अत: इस समय यह धारणा व्याप्त थी किदुर्बलों की शक्ति राजा है-'दुर्बलानां बलं राजा' (२४७.७) । राजा की प्रसन्नता और क्रोध दोनों के परिणाम मानभट की कथा में देखे जा सकते हैं। प्रसन्न होकर राजा जुर्ण-ठक्कुर को जागीर प्रदान करता है तथा उसके (ठाकुर के) द्वारा राजकुमार का बध कर देने के कारण उन दोनों को राज्य छोड़कर भागना पड़ता
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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