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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
शस्त्रास्त्र
Rao में उल्लिखित उपर्युक्त राजनैतिक प्रसंगों में वर्णन उपलब्ध नहीं है और न सैनिक प्रयाण का ही । उद्योतन ने निम्नोक्त ३९ प्रकार के शस्त्रास्त्रों का उल्लेख किया है :
अस ( ३१.१२), सिधेणु ( २२३.२५), असियत्तवणं ( ३७.२६), कत्ति (२४८.२१), करवाल (१८८.१), करवत्त (३६.२१), करालदंत (३९.२१), कस (२३१.१६), कुहाड़ा ( ३९.१२), कोदण्ड (१८८.१), कोंत (१७८.११), कोन्तेय (१६८.२५), खडग (१८८.११), खड गखेटक (१९५.१०), खेड्ड (१५०.२२), चक्र ( ३७.२६), चाप ( २२३-२५), छुरिया ( १३६.२४), भस ( १९८.२५), तोमर ( ३७.२९), दंड ( २३१.१६), दर्पसायण - बंध ( १३६.२६) पक्कलपाइक्क ( १६८.२५), पत्तलदल ( ३७.२९), पथरा ( २७४.१६), फरखेड्ड (१५०.२२), मंडला ( ८.१९ ), मुद्गर ( १९५.२७), यन्त्र ( २३१.१६), यमदण्ड ( १६५. २७), रज्जू (२३१.१६), लकुट ( २७४.१६), वज्र ( १६५.२७), वसुनन्दक (१३६.२०), शक्ति ( ३७.२९), शैल (४०.५), सब्बल ( ४०.५), सर (४०. ५ ) एवं सरासण (१९८.२५) ।
प्राचीन साहित्य के आधार पर इनमें से अधिकांश शास्त्रास्त्रों का स्वरूप स्पष्ट हो चुका है । कुछ का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :
कहीं भी किसी युद्ध का फिर भी विभिन्न प्रसंगों
सिधेनु - कुवलयमाला में प्रसिधेनु का चार वार उल्लेख हुआ है । छोटी तलवार या छुरी असिधेनुका कहलाती थी । अमरकोष ( २.८.९२) में इसके शस्त्री, असिपुत्री, छरिका और असिधेनुका- ये चार नाम दिये हैं । आत्मरक्षण के लिए छुरिका अथवा असिधेनुका छोटे किन्तु अत्यन्त उपयोगी अस्त्र थे (१३६.२४, १९५.१०) । सैनिक इसे कमर में लटका लेते थे । ' अहिच्छत्रा प्राप्त गुप्तकालीन मिट्टी की मूर्तियों में एक ऐसे सैनिक की मूर्ति मिली है, कमर में अधेिनु बांधे हुए है ।"
१. हर्षचरित, पृ० २१.
कत्तिय - कुव ० में युद्ध के प्रसंग में कर्तरी का उल्लेख हुआ है । अमरकोषकार ने कृपाणी और कर्तरी को पर्यायवाची माना है (२.१०.३४ ) | हेमचन्द्र कर्तरी की अन्य शस्त्रों के साथ गणना की है । कर्तरी का अर्थ कैंची भी है, किन्तु यह सम्भवतया एक प्रकार की तलवार थी, जो युद्ध में काम आती थी ।
२.
३. अभिधानचिन्तामणि, ३.५७५.
अ० - ह० अ० फलक २ चित्र १२.
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४. द्रष्टव्य — लेखक का निबन्ध - " प्राचीन भारतीय युद्ध विज्ञान" कुछ नये सन्दर्भ - जैन सिद्धान्त -भास्कर, १९६८.