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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन २. ब्राह्मण पुरोहित का कार्य करते थे। जन्मपत्री, लग्नपत्री देखने तथा
विवाह सम्पन्न कराने का कार्य भी उन्हीं का था। विवाह सम्पन्न करानेवाले द्विज अनेक वेद तथा सिद्धान्त शास्त्रों में पारंगत होते
थे।' इन्हें प्रभूत दक्षिणा दी जाती थी। ३. मांगलिक अवसरों पर अथवा यात्रा प्रारम्भ के समय ब्राह्मणों को
दक्षिणा दी जाती थो तथा उनकी आशीषे ली जाती थीं। ४. स्तुतिपाठ करनेवाले ब्राह्मण श्रोत्रिक ब्राह्मण कहे जाते थे। ५. ब्राह्मण-भोज कराना तत्कालीन समाज में पुण्यप्राप्ति का साधन
था । संकट के समय तथा किसी सम्बन्धी को मृत्यु के बाद ब्राह्मण
भोज कराया जाता था (१८७.५) । ६. ब्राह्मण को गौ, भूमि, धान्य एवं हल आदि का दान करना हो धर्म
माना जाता था। इस विचारधारा के धार्मिक आचार्य भी
थे (२०५.३५)। ७. तीर्थयात्रा को जाते समय व्यक्ति अपनी सम्पत्ति ब्राह्मण को दान
कर जाते थे। ८. ब्राह्मण जन्म के दरिद्री होते थे। कोई विरला ही धनी होता था। ६. ब्राह्मणों की कुछ निश्चित क्रियाएँ थीं। उनके घरों में प्रतिदिन
गायत्री का जाप होता था। वे यज्ञ करते थे। यदि ब्राह्मण अपनी क्रियाओं से शिथिल हो अन्य कार्य करने लगता तो समाज में उसकी
निन्दा होती थी। १०. ब्राह्मणों की अपनी पाठशालाएँ थीं जहाँ वेदपाठ होता रहता था। ११. नगर में ब्राह्मणसंघ तथा ब्राह्मणकुल तो होते ही थे, दान में प्राप्त
गांव में ब्राह्मणों का निवास होने से गांव का नाम भी ब्राह्मण
अग्गाहार कहा जाने लगा था। १२. ब्राह्मणबध समाज में निन्दनीय माना जाता था। महापापी म्लेच्छ
ही ब्राह्मणबध का ध्यान न रखते थे। इससे स्पष्ट है कि तत्कालीन समाज में ब्राह्मणों की काफी प्रतिष्ठा थी। पर कुव० के उक्त सन्दर्भो से ज्ञात होता है कि यह प्रतिष्ठा निर्धनता के कारण थोथी बनकर रह गई थी। यद्यपि उनका अपने कुल के आदर्शों से च्युत होना उपहास का कारण बनता था।
१. अणेय-वेय-समय-सत्थ-पारयस्स दुयाइणो, १७१.५ 2. The Brahmanas of our period appear to have maintained
their influential position in Society, not only on account of their birth but also their learning and character.
-S• RTA. P.446.