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वर्ण एवं जातियाँ
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क्षत्रिय
उद्योतन ने क्षत्रिय वर्ण के सम्बन्ध में इन सन्दर्भों में जानकारी दी है । उज्जयिनी के राजा अवन्तिवर्द्धन के दरबार में राजवंश में उत्पन्न क्षेत्रभट नाम का एक वृद्ध ठाकुर (जुण्ण-ठक्कुरो) अपने पुत्र वीरभट के साथ राजा की सेवा में नियुक्त था । उसे सेवा के बदले में कूपवन्द्र नामक गांव राजा ने दिया था (५०.२६) । उस वृद्ध ठाकुर के पौत्र शक्तिभट को दरबार में एक निश्चित आसन प्राप्त था, जिस पर कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बैठ सकता था (५०.३२, ३३) ।
ठाकुर (५०.२२) - उपर्युक्त उल्लेख से ज्ञात होता है कि राजवंश में उत्पन्न क्षत्रिय जाति को ठाकुर भी कहा जाता था । वर्तमान में भी क्षत्रियों को ठाकुर कहा जाता है । कुव० में उल्लिखित इस जुण्ण-ठक्कुर के सम्बन्ध में डा० बुद्धप्रकाश ने विस्तृत प्रकाश डाला है तथा ठाकुर शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विचार किया है ।" क्षत्रियों के अतिरिक्त ठाकुर ( ठक्कुर ) शब्द ब्राह्मणों के लिए भी प्रयुक्त होता था, गहड़वाल के गोविन्द्रचन्द्र के लेख में ठक्कुर को कश्यपगोत्रीय सरयूपारी ब्राह्मण कहा गया है । 2 चंदेल लेखों में उल्लिखित ठक्कुर के साथ राउत नामक ब्राह्मण विशेषरूप से वर्णित है । 3 ठाकुरी परिवारों का सम्बन्ध प्राचीन भारत के इतिहास में राजघरानों से बना रहता था । इससे उनके प्रतिष्ठित होने की सूचना मिलती है । प्राचीन भारतीय साहित्य में 'ठाकुर' शब्द का अनेक अर्थों में प्रयोग हुआ है, किन्तु प्रायः राजघराने के व्यक्तियों के लिए यह अधिक व्यवहृत हुआ है । "
इक्ष्वाकु - प्राचीन भारत में इक्ष्वाकु क्षत्रियों का एक वंश था । उद्द्योतनसूरि ने इक्ष्वाकुवंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विशेष जानकारी दी है । ऐणिका को अपना परिचय देते हुए कुवलयचन्द्र कहता है- 'इन्द्र ने ऋषभदेव को आहार के लिये ईख प्रस्तुत की ।' भगवान् ने जब ईख ग्रहण कर लिया तो इन्द्र ने कहा कि आज से भगवान् का वंश इक्ष्वाकु के नाम से जाना जायेगा । उस समय से इक्ष्वाकु क्षत्रिय के नाम से प्रसिद्ध हो गये -तप्पभिदं च णं इक्खागा खत्तिया सिद्धा ताव (१३४.१७ ) । ऋषभदेव के पुत्र भरत एवं बाहुवली थे । भरत का बुद्धप्रकाश,—'ठाकुर' : सेन्ट्रल एशियाटिक जर्नल, भाग ३ (१९५७), पृ० २२०-२३७.
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उ०- पू० मा० इ०, पृ० ३१८.
एपिग्राफिका इण्डिका, भाग १४, पृ० २७४.
वी० सी० ला०—सम क्षत्रिय ट्राइब्स आफ एन्शियण्ट इण्डिया, पृ० १२०
विशेष के लिए द्रष्टव्य — बु० - स्ट० इ० सि० में 'ठाकुर' नामक अध्याय, पृ० २४०-२६१.
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भो भो सुरासुर-णव-गंधव्वा, अज्जपभिई भगवओ एस वंसो इक्खागो, १३४.१६.