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वर्ण एवं जातियाँ
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६८.१८) करने का वायदा दिया। कोसाम्बी नगरी में शाम होते ही ब्राह्मणों के घरों में गायत्री जप होने लगा (८२ २७)। तथा ब्राह्मण शालाओं में जोरजोर से वेद का पाठ होने लगा (८२.३२)। चिन्तामणिपल्ली में चिलातों के लिये ब्राह्मणों का बध करना दूध में पिलाये जाने के सदृश (दुठ्ठ-घोटु) था।'
__ माकन्दी नगरी में यज्ञदत्त नाम का जन्म-दरिद्री श्रोत्रिक ब्राह्मण रहता (११७.६) । उसके यज्ञसोम नाम का पुत्र था। उस नगर में जब अकाल पड़ा तो लोग ब्राह्मण-पूजा भूल गये (विसंवयंति बंभण-पूयात्रो, ११७.२१)। यज्ञदत्त ने याचनामात्र व्यापार को अपनाकर भिक्षावृत्ति प्रारम्भ की, किन्तु भरण-पोषण न होने से वह मर गया। उसका पुत्र यज्ञसोम किसी प्रकार जीवित रहा, किन्तु उससे ब्राह्मण की सभी क्रियाएँ छूट गयीं (अकय-बंभणक्कारो) तथा शरीर पर जनेऊ भी नहीं रहा (अबद्ध-मुंज-मेहलो, ११७.२८)। अतः बन्धुबान्धवों ने उसे त्याग दिया। लोगों ने 'यह ब्राह्मण-पुत्र है' (बंभण-डिभो, ११७.३०) यह सोचकर उसे कष्ट नहीं होने दिया। अतः यज्ञसोम ने किसी प्रकार उस अकाल को व्यतीत किया और वह ब्राह्मणबटुक (बंभणो-सोमवडुनो, ११८.१) सोलह वर्ष का हो गया । जीविका के लिए वह कचड़े खाने को साफ करता तथा जूठे कुल्हड़ों को फेंकता था । अतः लोग उस पर हँसते थे कि वह कैसा ब्राह्मण है ?२ इस प्रकार की निन्दा और उपहास के कारण वह ब्राह्मण-पुत्र नगर छोड़कर चला गया (११८.१४)।
हस्तिनापुर में भगवान महावीर का समवसरण लगा था। वहाँ एक ब्राह्मण का पूत्र (बंभण-दारओ) उपस्थित हया। उसके श्याम वक्षस्थल पर श्वेत ब्रह्मसूत्र शोभित हो रहा था। गले में दुपट्टा पड़ा था। भगवान ने उसका परिचय देते हुए कहा कि यहां से पास में ही सरलपुर नाम का ब्राह्मणों का एक अग्गाहार है-बंभणाणं अगगाहारं। वहां यज्ञदेव नाम का चतर्वेदी रहता है। उसके पत्र का नाम स्वयंभदेव है। दुर्भाग्य से वह इतना निर्धन हो गया कि लोकयात्रा करना उसने छोड़ दिया (ण कीरति लोगयत्ताओ), अतिथिसत्कार करना भूल गया (२५८.३१), ब्राह्मण की क्रियाएँ शिथिल पड़ गयीं। अतः अपनी माता के कहने पर वह धन कमाने के लिए घर से बाहर निकल गया ।
उद्योतनसूरि द्वारा कुव० में उल्लिखित उपर्युक्त विवरण से ब्राह्मण वर्ण के सम्बन्ध में मुख्यरूप से निम्न तथ्य प्राप्त होते हैं :१. राज-दरबार में नियुक्त ब्राह्मणों को महाब्राह्मण कहा जाता था,
जो सम्मान सूचक है। १. पावकम्महं चिलायहं दुटुघुटु-जइसउं बंभणु मारियव्वउ, ११२.२१. २. सोहेइ वच्च-घरए उज्झइ उच्चिट्ठ-मल्लय-णिहाए।
लोएण उवहसिज्जइ किर एसो बंभणो आसि ।। ११८.३. सामल-बच्छत्थल-घोलमाण-सिय-बम्ह-सुत्त-सोहिल्लो । पवणंदोलिर-सोहिय-कंठद्ध-णिबद्ध-वसणिल्लो ॥२५८.१४.