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________________ શ્રીસુખમની ४-१ रमईआके गुन चेति परानी । कवन मूलते कवन दृसटानी ॥१॥ जिनि तूं साजि सवारि सीगारिआ । गरभ अगनि महि जिनहि उबारिआ ॥२॥ बार बिवसथा तुझहि पिआरै दूध । भरि जोबन भोजन सुख सूध ॥३॥ बिरधि भइआ ऊपरि साक सैन । मुखि अपिआउ बैठ कउ दैन ॥४॥ इहु निरगुनु गुनु कछू न बूझै । बखसि लेहु तउ नानक सीझै ॥५॥ [ रमईआ = मधे यापेक्षा - राम. चेति = यित - वियार ४२. इसटानी हेमाय छे. साजि सवारि = स समारीन. सीगारिआ = AYगार्यो. उबारिमा = 5॥री सीधेी. बार विवसथा = 4८५ अवस्या. सूध-शुद्ध-निर्भप. साक = मानन. सैन = शमन-माश्रयस्थान. भपिभार = यात्मीय - सी . बखसि लेहु = मा ४।; क्षमा . मोझे = सिद्ध या५ - पार पडे. ] ४-१ 3 प्राणी ! राम-रभैयाना गुता पियार ! -(तुरे ગંદા પદાર્થોને બને છે તે) તારું મૂળ શું છે, અને मत्यारे । माय छे ! (१)
SR No.032277
Book TitleSukhmani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganbhai Prabhudas Desai
PublisherParivar Prakashan Sahkari Mandir
Publication Year1970
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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