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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/72 राजा से रंक और रंक से राजा
(गौतम गणधर के पूर्वभवों पर आधारित) . ___ इस भरत क्षेत्र में अनेक नगरों से सुशोभित अवन्ति नामक देश में राजा महीचन्द राज्य करते थे। एक दिन नगरी के उपवन में अंगभूषण नामक वीतरागी मुनिराज पधारे। मुनिराज का आगमन जानकर राजा महीचन्द अपने रनवास और नगरजनों को साथ लेकर मुनिराज के दर्शन करने के लिये उपवन में गया। उपवन में मुनिराज के दर्शन, पूजन, वन्दन, स्तुति करके राजा ने मुनिराज से धर्मवृद्धिरूप आशीर्वाद प्राप्त किया। तथा धर्मोपदेश सुनने की भावना से उनके ही समीप बैठ गया। मुनिराज का धर्मोपदेश सुनने उपवन में अपार जन-समुदाय इकट्ठा हो गया, उसी सभा में एक क्षुद्र की तीन कुरूपा कन्यायें भी शीघ्रता से आकर बैठ गईं। - . मुनिराज ने पुण्य, पाप और धर्म व उनके फल का विस्तार पूर्वक उपदेश दिया, जिसे सुनकर राजा महीचन्द बहुत ही प्रसन्न हुआ। यद्यपि वे क्षुद्रकन्यायें दुष्टस्वंभावी, दीन, तीव्र दुःखों से दुःखी थीं, काली थीं, दया रहित थीं, माता-पिता, भाई-बन्धुओं से रहित थीं; तथापि जब उन क्षुद्र कन्याओं पर राजा की नजर पड़ी तो उनको देखते ही राजा के नेत्र प्रफुल्लित हो गये, मन में हुए आनन्द के भाव चहरे पर झलकने लगे। इस कारण राजा ने तुरन्त ही मुनिराज से पूछा कि इन क्षुद्र कन्याओं को देखकर मेरे हृदय में अत्यन्त प्रेम क्यों उत्पन्न हो रहा है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मुनिराज ने कहा किं इनके साथ तुम्हारा पूर्व भव में सम्बन्ध था, इसीकारण तुम्हें इनसे अनुराग हो रहा है। .
राजा को पूर्व भव जानने की जिज्ञासा हुई, तब मुनिराज ने उनके पूर्व भव का वृतान्त इसप्रकार कहना आरम्भ किया।
“इस भरत क्षेत्र में काशी नामक महाविशाल देश है। जो तीर्थंकर परमदेव के पंचकल्याणकों सहित अनेक प्रकार की शोभा से सुशोभित है। इस काशी देश में बनारस नामक एक नगर है। उसमें एक विश्वलोचन नामक