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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/59 कहते हैं- इनकी जितनी महिमा अन्दर में आती है, उसे व्यक्त करने के लिए शब्द भी कम पड़ते हैं। तीन लोक की सम्पदा भी जिसके सामने सड़े हुए तृण के समान भासित होती है। - ऐसा महा महिमावंत अपना चैतन्य प्रभु है। सादि-अनन्त पूर्ण अतीन्द्रिय आनन्द में केली करने वाले सिद्धप्रभु, नित्यबोधिनी जिनवाणी माँ और चैतन्यामृत में सराबोर, सिद्ध सादृश्य, झपट के (शीघ्र ही) केवलज्ञान लेने की तैयारी वाले गुरुवर धन्य हैं, धन्य हैं; धन्य हैं वह धन्य हैं, वह साध्य और वे साधक धन्य हैं। इनकी जितनी महिमा की जावे वह कम ही है। ऐसे ज्ञान-वैराग्य वर्धक विचारों से पूज्य सूर्यमित्र मुनिराज का ज्ञान-वैराग्य और अधिक पुष्ट हो गया। . हस्तरेखा समान हेय, ज्ञेय एवं उपादेय वस्तुओं के सम्यग्ज्ञान के प्रभाव से, तथा द्वादश प्रकार के संयम को पालने में तत्पर एवं जिनशासन में कहे गये व्रतों को निर्दोष पालने में और तपों को तपने में सतत प्रयत्न परायण ऐसे श्री सूर्यमित्र मुनिराज, इन्द्र, नरेन्द्र और नागेन्द्रों से वंदनीय हो गये। -- सम्यग्ज्ञानादि अनेक गुणों की वृद्धि से तीन लोक में जिनकी कीर्ति विस्तीर्ण हो गई है, और जो रत्नत्रय में परमोत्कृष्ट हो गये हैं ऐसे श्री सूर्यमित्र तपोधन स्वरूप विश्रांतिरूप तप में संलग्न हो गये। इसलिए हे भव्यजीवो ! अपने हित के लिये आदरपूर्वक सकल शास्त्रों का अध्ययन कर सम्यग्ज्ञान का लाभ लेना चाहिए और शिवसुख दायक सम्यक्चारित्र से अपने जीवन को सजा लेना चाहिए; क्योंकि ज्ञानी पुरुष ही ज्ञान का आश्रय लेते हैं और ज्ञान में ही (आत्मा में ही) ज्ञान के प्रतिष्ठित होने से शिवरमणी के मुखारविंद (सिद्धदशा) का अवलोकन करते हैं। तीनलोक में ज्ञाननेत्र के समान और कोई मार्गदृष्टा नहीं है। कहा भी है - . ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारण । इह परमामृत जन्म, जरा मृत रोग निवारण ॥ ज्ञान ही समस्त पदार्थों का ज्ञायक, और कर्मों का नाशक है एवं मोक्ष प्रदाता भी ज्ञान ही है। अत: मैंने भी निरन्तर ज्ञान में मन लगाया है, क्योंकि इस ज्ञानस्वरूप निज आत्मा के आश्रय से ही ज्ञानी अर्थात् सुखी हुआ जा सकता है।
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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