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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/38 एक चारण ऋद्धिधारी मुनिराज से अपने पूर्वभव का वृतान्त सुना। जिसे सुनकर अपने पूर्वभव सम्बन्धी ज्ञान होने पर उन दम्पत्ति में अत्यन्त गाढ़ी प्रीति हो गई। .. किसी एक समय किसी निमित्त के मिलने से हिरण्यवर्मा संसार-शरीर और भोगों से विरक्त हो गया और अपने पुत्र को राज्य सोंपकर स्वयं ने जिनदीक्षा धारण कर ली। अपने पति को दीक्षित होते देखकर प्रभावती ने भी गुणवती आर्यिका के समीप आर्यिका दीक्षा ले ली। कुछ दिनों के बाद गुणवती आर्यिका के साथ प्रभावती ने वहाँ से विहार किया और विहार करते-करते पुण्डरीकणी नगरी में आ पहुँची। वहाँ प्रभावती को देखकर धनवती सेठानी ने गुणवती आर्यिका से पूछा कि यह कौन है ? जिसे देखकर मेरे हृदय में स्नेह आता है। इसका कारण क्या है ? कृपा करके मुझे बताइये। ___ यह सुनकर स्वयं प्रभावती आर्यिका ने कहा कि क्या तुम्हें तुम्हारे घर में रहने वाला कबूतर युगल याद नहीं ? याद करो, मैं तुम्हारे घर में रतिसेना नाम की कबूतरी थी। यह बात सुनकर सेठानी को बहुत ही आश्चर्य हुआ और उसने पूछा कि रतिकर कबूतर कहाँ है ? उत्तर में प्रभावती ने कहा कि वह भी मरकर विद्याधरों का राजा हिरण्यवर्मा हुआ था, परन्तु अब राजा हिरण्यवर्मा भी मुनिदीक्षा धारण करके विहार करते हुए इसी नगरी में आये हैं। ऐसा सुनकर सेठानी ने मुनि के पास जाकर भक्ति पूर्वक मुनि को नमस्कार किया और तत्पश्चात् प्रभावती के उपदेश से सेठानी भी आर्यिका हो गई। ___ इधर भवदेव का जीव विद्युतचोर हुआ। उस विद्युतचोर ने सेठानी की दासी के मुँह से इन मुनिराज हिरण्यवर्मा और आर्यिका प्रभावती के पूर्वभवों का वृतान्त सुना, इसलिये दोनों को श्मशान में ध्यानस्थ जानकर उस विद्युतचोर ने उन्हें जलती चिता में फेंक दिया। उस समय वे दोनों अग्नि के तीव्र ताप परीषह से शुद्ध होकर समताभावों से मरे और अपने पुण्य प्रताप से स्वर्ग में ऊँची जाति के देव-देवी हुए। जब राजा को इस बात का पता लगा तो राजा ने विद्युतचोर को मार डालने की आज्ञा दी, उन दोनों देव-देवी ने अवधिज्ञान से राजा का
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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