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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/37 बत्तीस स्त्रियों में धनवती नाम की सेठानी सबसे मुख्य थी। इस सेठ के घर सुकान्त का जीव रतिकर नाम का कबूतर और रतिवेगा का जीव रतिसेना नाम की कबूतरी हुई। यह दोनों कबूतर-कबूतरी सेठ के घर में आनन्दपूर्वक अपना समय बिताने लगे। ____एक बार चारण ऋद्धिधारी मुनिराज आकाश मार्ग से सेठ के यहाँ आहार के लिये पधारे। उन्हें देखकर सेठ-सेठानी के हृदय में अत्यन्त आनन्द हुआ और उन्होंने शुद्धभाव से मुनिराज का पड़गाहन किया तथा नवधाभक्तिपूर्वक आहारदान दिया। उस समय कबूतर-कबूतरी के जीव ने भी भक्तिभाव से मुनिराज के चरण कमलों के दर्शन किये और पंख फैलाकर चरणों का स्पर्श किया। मुनिराज के दर्शन मात्र से ही उन दोनों को अपने पूर्वभव का जातिस्मरण ज्ञान हुआ और उन्होंने आहारदान की बहुत अनुमोदना की, जिसके प्रभाव से उनके महान पुण्य का बंध हुआ। एक समय की बात है कि वे दोनों कबूतर-कबूतरी दाना चुगने के लिये अन्य गाँव में गये। वहाँ उनके पूर्वभव का शत्रु भवदेव का जीव मरकर बिलाव हुआ था। वह अपने पूर्वभव के बैर के कारण इन दोनों को मारकर खा गया। इसलिये ग्रन्थकार का कहना है कि कभी भी किसी के साथ बैरभाव मत रखो, यह बैरभाव ही भव-भवान्तर में जीव को दुःख देने वाला है। विजयार्द्ध की दक्षिण श्रेणी में गांधार देश की शीखली नाम की सुन्दर नगरी का राजा आदित्यगति और रानी शशिप्रभा थी।रतिकर नाम का कबूतर (सुकान्त का जीव) मरकर उन राजा-रानी का हिरण्यवर्मा नाम का पुत्र हुआ। और विजयार्द्ध की उत्तरश्रेणी के गौरी देश के भोगपुर नाम की नगरी के विद्याधर राजा वायुधर की स्वर्णप्रभा नाम की रानी के गर्भ से वह रतिसेना नाम की कबूतरी (रतिवेगा का जीव) प्रभावती नाम की पुत्री हुई। प्रभावती का विवाह हिरण्यवर्मा के साथ हुआ। योगानुयोग अनुसार कुछ दिनों के पश्चात् प्रभावती को एक कबूतर-युगल को उड़ते देखकर अपने पूर्वभव की याद आ गई। तत्पश्चात् एक दिन प्रभावती और हिरण्यवर्मा ने
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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