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- जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/18 ये दोनों आगामी भव में श्री नेमिनाथ प्रभु के कुलं में जन्म लेकर उनके साथ ही मोक्ष जाने वाले हैं। अत: तुम इन पर करुणा करो। इस प्रकार जब मुनिराज
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ने आज्ञा की, तब यक्षराज कहता है कि आप जैसी आज्ञा करेंगे वैसा ही होगा - ऐसा कहकर उसने उन विप्र-पुत्रों को बंधन से मुक्त कर दिया। वे विप्र-पुत्र भी मुनिराज के श्रीमुख से यति और श्रावक का धर्म श्रवण करके अणुव्रत लेकर श्रावक हो गये।
वे जीवनभर सम्यक्त्व सहित श्रावक के व्रतों का पालन करते हुए अन्त में समाधिमरण करके पहले स्वर्ग में देव हुए और उनके माता-पिता जिनधर्म की अश्रद्धा करके मरे, इसलिये मिथ्यात्व के प्रभाव से दुर्गति में गये। वे दोनों भाई स्वर्गलोक का सुख भोगकर वहाँ से चयकर अयोध्यापुरी में समुद्रदत्त
और धारिणी नामक सेठ-सेठानी के पूर्णभद्र और मणिभद्र नामक पुत्र हुए, वे वहाँ भी सम्यक्त्व सहित महाजिनधर्मी हुए।
एक दिन महेन्द्रसेन नामक मुनिराज के मुख से धर्म श्रवण करके उनके पिता समुद्रदत्त मुनि हुए और साथ ही नगर के राजा व अन्य अनेक लोग भी मुनि हुए।