________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-16/40 धृतिषेण- नहीं मनोरमा ! ऐसा नहीं कहते, तुम चिन्ता मत करो। मैं सभी भ्रम के बादल छट जाने पर, निर्मल आकाश में धवल चाँदनी के प्रकाश में ही तुम्हें ससम्मान घर पहुँचाऊँगा। ऐसी व्यवस्था भी तुम्हारे पुण्योदय से यहाँ सहज ही हो गई है। नगरद्वार बन्द है तथा मुझे रात्रि के अन्तिम प्रहर में स्वप्न आया है कि अब यह दरवाजा मात्र शीलवती स्त्री के स्पर्श से ही खुलेगा, अन्यथा नहीं खुलेगा। अतः अब तुम पूर्वकृत पापोदय से अपने ऊपर लगे कलंक को मिटाकर शील की प्रसिद्धि करो। मैं तुम्हें अभी बुलवाता
metAthaARANA wwser
- ar
W
NAR
WATRICommodation:
NAGAMEIN A
alamanded O
NPNA
- EMEnhanawwantak
TOP
(मनोरमा अपने निर्धारित स्थान पर जाकर बैठ जाती है, उसके पति सासु, ससुर, मामा आदि एवं अन्य सभासद व सम्पूर्ण जनताजनार्दन आदि उपस्थित हैं, राजा धृतिषेण घोषणा करते
Careena
MAA
Restaudin RASHTRAMANMANASANCINNAMANN A
NamAR MARATHI SarekNTR
AIN aai ma
y aNANDHARPATRAMDM
IRAGARHamal
Seadmory १-30AMMUM
Bateitraa
IN
PARAN
IN
Awaren HTARNaatan, Achartarak
धृतिषेण-देवियोऔर ESE सज्जनो! आप लोगों को ज्ञात ही है कि आज प्रातःकाल से ही नगरद्वार बन्द हैं, प्रजा त्रस्त है, दैनिक कार्य सम्पन्न नहीं हो पा रहे हैं। मुझे सूचना मिली है कि राजकर्मचारियों ने दरवाजों को खोलने के सभी प्रयत्न कर लिए हैं, पर उनके सभी प्रयास असफल सिद्ध हुये। आज मुझे रात्रि के अन्तिम पहर में आये स्वप्नानुसार शीलवती महिला के स्पर्श मात्र से ही यह दरवाजे खुलेंगे। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप में से किसी के भी द्वारा यह कार्य सम्पन्न हो सकता है, क्योंकि आप सभी शीलवती महिलाएँ हैं, परन्तु सर्वप्रथम यह अवसर मनोरमा को दिया जाएगा,