________________
भगवान देशभूषण और कुलभूषण
(दो वैरागी राजकुमारों की कहानी) अयोध्यानगरी में श्री देशभूषण और कुलभूषण - दो केवली भगवान पधारे थे.... रामचन्द्रजी आदि उनका उपदेश सुनने गये थे.... तब भरत ने दीक्षा ली थी और हाथी ने श्रावक व्रत अंगीकार किये थे, उन देशभूषण-कुलभूषण के पूर्वभव की संक्षिप्त कहानी हम भाग-२ में पढ़ चुके हैं। अब उन मुनि भगवंतों के जन्म से लेकर मोक्ष तक की कहानी पढ़िये।
महापुरुष रामचन्द्रजी के समय की बात है। सिद्धार्थनगरी के राजा क्षेमंकर थे और उनकी रानी का नाम विमलादेवी था। उनके दो पुत्र थेएक देशभूषण और दूसरा कुलभूषण । दोनों भाइयों को एक-दूसरे के प्रति अपार प्रेम था। मात्र इसी भव में नहीं, बल्कि पूर्व में अनेक भवों से वे एक-दूसरे के भाई हो रहे थे। दोनों भाई आत्मा को जानने वाले थे और पूर्वभव के संस्कारी थे।
राजा ने बाल्यावस्था से ही दोनों को विद्याभ्यास के लिए किसी अन्य नगर भेज दिया था। पन्द्रह वर्ष तक दोनों भाई विद्याभ्यास में इतने मस्त थे कि विद्यागुरु के अलावा किसी और को जानते तक नहीं थे। विद्याभ्यास पूरा करके जिस समय दोनों युवा राजकुमार घर आये, उस समय राजा ने नगरी का शृंगार करके उनका भव्य स्वागत किया और उनके विवाह के लिए राजकन्याओं को पसंद करने की तैयारी की।
दोनों भाइयों की स्वागत यात्रा नगरी में घूमती-घूमती राजमहल के पास आयी, वहाँ झरोखे में एक अतिसुन्दर राजकन्या प्रसन्नचित्त से खड़ी थी। उसका अद्भुत रूप देखकर दोनों राजकुमार उसके ऊपर मुग्ध हो गये। वह राजकन्या भी एकटक उनको देख रही थी, दोनों का रूप निहारती-निहारती वह बहुत प्रसन्न हो रही थी।
अब, एक साथ उन देशभूषण और कुलभूषण दोनों भाइयों को