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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/८८ धर्म का आचरण करने वाला प्राणी हीन जाति का हो तो भी शोभता है और स्वर्ग को जाता है, परन्तु धर्म-हीन प्राणी नहीं शोभता और दुर्गात में जाता है । शील बिना विषयासक्त प्राणी जीता हो तो भी मरे जैसा है, क्योंकि जैसे मुर्दे में कोई गुण नहीं होते, उसी प्रकार शील रहित जीव में कोई गुण नहीं होते ।
जो मूर्ख प्राणी स्वस्त्री को छोड़ कर परस्त्री का सेवन करता है, वह अपनी थाली का भोजन छोड़ कर चाण्डाल के घर की जूठन खाने जाता है । इसे समझ कर हे मित्र ! तू स्वस्त्री में सन्तोष कर और बाद में हमेशा के लिए स्त्री मात्र का त्याग कर । जो विद्वान एकाग्र चित्त से शील धर्म का पालन करता है, उसके ऊपर मुक्ति-स्त्री प्रसन्न होती है। एक दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला जीव नौ लाख जीवों की हिंसा से बचता है ।
- इसी प्रकार स्त्रियों में भी जो स्त्री शील रूपी आभूषणों को धारण करती है, वह जगत में शोभा पाती है, प्रशंसनीय होती है । जिसका उत्तम शील-भण्डार इन्द्रिय रूपी चोरों द्वारा लूटा नहीं गया, वह शीलवान प्राणी धन्य है । अनेक संकट आने पर भी जो अपने शीलवत को नहीं छोड़ता वह धर्मात्मा प्रशंसनीय है । अधिक क्या कहें ? हे मित्र ! तू शीलव्रत का सर्व प्रकार से पालन कर । नीली सुन्दरी की कहानी:
लाट देश में जिनदत्त सेठ की पुत्री का नाम नीली था वह सेठ जिधर्मी था और जिनधर्मी के अलावा अन्य धर्मियों से अपनी पुत्री ब्याहना न्हीं चाहता था ।
इसी देश के समुद्रदत्त सेठ का पुत्र सागरदत्त एक बार नीली का रूप देख कर मोहित हो गया और उसने उसके साथ शादी करने की इच्छा व्यक्त की, परन्तु वह जिनमत का द्वेषी, विधर्मी होने से जिनदत्त सेठ उसके साथ नीली की शादी करने को तैयार नहीं था ।
तब उस सागरदत्त ने कपट पूर्वक जिनधर्म स्वीकार करने का नाटक किया और श्रावक जैसा आचरण करने लगा । अतः सागरदत्त