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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/७२ ने सरोवर के बीचों-बीच रत्न-सिंहासन की रचना करके उसके ऊपर बिठाया और वादिन बजा कर उसके व्रत की प्रशंसा की ।
ऐसा दैवी-प्रभाव देख कर राजा भयभीत हुआ और प्रभावित होकर उसने यमपाल की प्रशंसा करके उसका सम्मान किया । .
- अहिंसा के सम्बन्ध में एक छोटी-सी प्रतिज्ञा का भी ऐसा प्रभाव देखकर यमपाल ने जीवन भर के लिए हिंसा का त्याग करके अहिंसाणुव्रत धारण किया । , इस प्रकार व्रत के प्रभाव से यमपाल जैसा चाण्डाल भी देव और राजा से सम्मानित होकर स्वर्ग में गया ।
शास्त्रकार कहते हैं- “अहिंसा के एक अंश का पालन करने से भी चाण्डाल जैसे जीव ने ऐसा फल पाया तो सम्पूर्ण वीतराग रूप श्रेष्ठ अहिंसा का पालन करने से मोक्ष रूपी उत्तम फल मिले- उसकी महिमा कौन कर सकता है - ऐसा जानकर हे भव्यजीवो ! तुम जिनधर्म की अहिंसा का पालन करो ।"
समय के पहले और भाग्य से अधिक कभी किसी को कुछ नहीं मिलता।
जब ऋषभदेव को आहार प्राप्ति की उपादानगत योग्यता पक गई तो आहार देनेवालों को भी जातिस्मरण हो गया। इससे तो यही सिद्ध होता है कि जब अपनी अन्तर से तैयारी हो तो निमित्त तो हाजिर ही रहता है, पर जब हमारी पात्रता ही न पके तो निमित्त भी नहीं मिलते। उपादानगत योग्यता और निमित्तों का सहज ऐसा ही संयोग है।
अत: निमित्तों को दोष देना ठीक नहीं है, अपनी पात्रता का विचार करना ही कल्याणकारी है।
__-पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, पृष्ठ ५८ ।