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________________ 2 सत्य व्रत सत्पुरुषों ने सत्य, अचौर्य आदि व्रतों का वर्ण अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए किया है, वहाँ सर्व जींवों का हित करने वाला और श्रेष्ठ व्रत की सिद्धि का कारण उत्तम सत्य कहलाता है । जो धर्मात्मा श्रावक स्थूल असत्य न बोलता, न बुलवाता और न बोलने वाले का अनुमोदन करता है, उसे सत्याणुव्रत होता है । सत्य को जानने वाले सद्बुद्धि गृहस्थों को सर्व जीवों का हित करने वाला मर्यादित वचन बोलना चाहिये, किसी की निन्दा नहीं करनी चाहिये और सब जीवों के लिये सुख देने वाली भाषा बोलनी चाहिये। हे भव्य ! तू सदा सर्वदा ऐसे ही वचन बोल कि जिससे आत्मा का कल्याण हो, धर्म का कारण हो, यश देने वाला हो और सर्वथा पाप रहित हो । ज्ञानी जन हमेशा जिनागम के अनुसार अनिंद्य, मधुर, प्रशंसनीय तथा विकथादि से रहित और धर्मोपदेश से भरे हुए वचन ही बोलते हैं । श्रावक के द्वारा दूसरों के हित के लिए कदाचित् कठोर वचन कभी कहने में आये अथवा दूसरे जीवों की रक्षा के लिए (परन्तु किसी का अहित न हो, इस रीति से) कथंचित् असत्य भी कहने में आये तो वह भी (उसका अहिंसा का ही अभिप्राय होने से ) सत्य की कोटि में आ जाता है और जो दूसरों को दुःख देने वाला हो, सुनते ही भय से दुःख उत्पन्न करने वाला हो, जीवों की मृत्यु का अथवा बन्ध का कारण हो ऐसे सत्य वचन को भी विद्वान असत्य ही कहते हैं । जिस प्रकार कषाय की उत्पत्ति भी हिंसा है, उसी प्रकार कषाय सहित वचन भी असत्य है ।
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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