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________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/४८ बस, राज्य हाथ में आते ही उन दुष्ट मन्त्रियों ने 'नरबलि यज्ञ' करने की घोषणा की...... और जहाँ मुनिवर विराजे थे, वहाँ चारों ओर से हिंसा के लिए पशु और दुर्गन्धित हड्डियाँ, मांस, चमड़ी तथा लकड़ी के ढेर लगा दिये और उन्हें सुलगाने के लिए बड़ी आग जला दी । मुनियों के चारों ओर अग्नि की ज्वाला भड़की । मुनिवरों पर घोर उपसर्ग हुआ । लेकिन ये तो थे मोक्ष के साधक वीतरागी मुनि भगवन्त ! अग्नि की ज्वाला के बीच में भी वे मुनिराज तो शान्ति से आत्मा के वीतरागी अमृतरस का पान करते रहे । बाहर में भले अग्नि भड़की, परन्तु अपने . अन्तर में उन्होंने क्रोधाग्नि जरा भी भड़कने नहीं दी । अग्नि की ज्वालायें धीरे-धीरे बढ़ने लगी....... लोगों में चारों ओर हाहाकार मच गया । हस्तिनापुर के जैन संघ को अपार चिन्ता होने लगी। मुनिवरों का उपसर्ग जब तक दूर नहीं होगा, तब तक सभी श्रावकों ने खाना-पीना त्याग दिया । . अरे, मोक्ष को साधने वाले सात सौ मुनियों के ऊपर ऐसा घोर उपसर्ग देखकर भूमि भी मानो फट गई.... आकाश में श्रवण नक्षत्र मानो काँप रहा हो । यह सब एक क्षुल्लकजी ने देखा और उनके मुंह से चीत्कार निकली । आचार्य महाराज ने भी निमित्त-ज्ञान से जान कर कहा- “अरे ! वहाँ हस्तिनापुर में सात सौ मुनियों के संघ के ऊपर बलि राजा घोर उपसर्ग कर रहा है और उन मुनिवरों का जीवन संकट में है ।" । क्षुल्लकजी ने पूछा- “प्रभो, इनको बचाने का कोई उपाय है ?" . आचार्य ने कहा-“हाँ, विष्णुकुमार मुनि उनका उपसर्ग दूर कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसी विक्रिया लब्धि (ऋद्धि) प्रगट हुई है, जिससे वे अपने शरीर का आकार जितना छोटा या बड़ा करना चाहें, उतना
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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