________________
जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/४७ हस्तिनापुर भगवान शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ - इन तीन तीर्थंकरों की जन्मभूमि है। यह कहानी जिस समय घटी, उस समय हस्तिनापुर में राजा पद्मराय राज्य करते थे। उनके एक भाई मुनि हो गये थे - उनका नाम था विष्णुकुमार। वे आत्मा के ज्ञान-ध्यान में मग्न रहते। उन्हें कुछ लब्धियाँ भी प्रगट हुई थी, परन्तु उनका उन पर ध्यान नहीं था। उनका ध्यान तो आत्मा की केवलज्ञान लब्धि साधने के ऊपर था। ... सिंहस्थ नाम का एक राजा था, इस हस्तिनापुर के राजा का शत्रु था
और उन्हें बारम्बार परेशान करता रहता था। पद्मराय उसे अभी तक जीत नहीं सका था। अन्त में बलि मन्त्री की युक्ति से पद्मराय ने उसे जीत लिया। इसलिए खुश होकर राजा ने बलि को मुँह माँगा वरदान माँगने को कहा, परन्तु बलि मन्त्री ने कहा - "हे राजन् जब आवश्यकता पड़ेगी, तब यह वरदान माँग लूँगा।"
इधर अकम्पन आदि सात सौ मुनि भी देश-विदेश विहार करते हुए भव्यजीवों को वीतराग धर्म समझाते हुए हस्तिनापुर नगरी पहुँचे। वहाँ अकम्पन इत्यादि मुनिवरों को देख कर बलि मन्त्री भय से काँप उठा। उसको डर लगा कि इन मुनियों के कारण हमारा उज्जैन का पाप अगर प्रगट हो गया तो यहाँ का राजा भी हमारा अपमान करके हमें यहाँ से निकाल देगा। क्रोधित होकर अपने वैर का बदला लेने के लिए वे चारों मन्त्री विचार करने लगे।
अन्त में उन पापियों ने सभी मुनियों को जान से मारने की एक दुष्ट योजना बनाई। राजा से जो वचन माँगना बाकी था, वह उन्होंने माँग लिया। उन्होंने कहा - "महाराज, हमें एक बहुत बड़ा यज्ञ करना है, इसलिए सात दिन के लिए आप राज्य हमें सौप दें।"
अपने वचन का पालन करके राजा ने उन्हें सात दिनों के लिये राज्य सौंप दिया और स्वयं राजमहल में जाकर रहने लगे।