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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/५३
दूसरा दृश्य:
(जिनमन्दिर में शास्त्रसभा चल रही है। संघपति वगैरह बैठे हुए हैं। एक के बाद एक श्रावक शास्त्र / पोथी लेकर आते हैं। तत्त्वार्थसूत्र पढ़ा जा रहा है। शुरुआत में सब एक साथ मंगलाचरण बोलते हैं:-)
मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥ (संघपतिजी शास्त्र पढ़ते हैं)
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" सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥ १ ॥ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शन ॥ २ ॥”
अहो, चैतन्यमूर्ति आत्मतत्त्व का सम्यक् श्रद्धान ही भवसागर से तारनेवाला जहाज है। जो जीव दुखमय संसार समुद्र में डूबना नहीं चाहते हैं और उसको तैरकर मोक्षपुरी में अनन्त सिद्ध भगवंतों के धाम में जाना चाहते हैं, वे निरन्तर दिन और रात, क्षण-क्षण और पल-पल इस सम्यग्दर्शन का पुरुषार्थ करें। सम्यग्दृष्टि को जैनधर्म की प्रभावना का परम उत्साह होता है। भगवान की रथयात्रा आदि महोत्सवों के द्वारा वह जैनधर्म की प्रभावना करता है। देखो! अपनी महारानी साहिबा जिनमती प्रतिवर्ष कितनी भव्ययात्रा निकालती हैं! कल भी ऐसी ही भव्य यात्रा निकलेगी, उसमें सब - उत्साह से भाग लेना।