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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/५२ राजा : क्या उपाय है, कहो! कहो!! .
मंत्री : देखिए! जैनधर्म और एकांत धर्म- इन दोनों धर्मों के विद्वान इस राज्य सभा में पधारें और वाद-विवाद करें और वाद-विवाद में जो जीत जाये, उसका रथ पहले निकले।
राजा : वाह! अति उत्तम! बोलो राजकुमारो! तुम्हें यह मंजूर है।
जिनकुमार : जी हाँ महाराज! हम जैनों को यह बात मंजूर है।
राजा : बोलो! अजिनकुमार तुम्हें!
अजिनकुमार : महाराज! मैं मेरी माताजी से पूछकर आता हूँ।
राजा : हाँ, इसी समय पूछकर आओ। (अजिनकुमार जाता है। थोड़ी देर में लौट आता है।)
अजिनकुमार : महाराज! मेरी माताजी को भी यह बात मंजूर है और हमारे एकांत धर्म की ओर से आचार्य संघश्री स्वयं ही वादविवाद करेंगे।
राजा : बहुत अच्छा! और जिनकुमार! तुम भी तुम्हारी माता से पूछकर यह बताओ कि तुम्हारी तरफ से वाद-विवाद में कौन खड़ा
होगा।
जिनकुमार : जैसी आज्ञा!
राजा : मंत्रीजी! तुम पूरी उज्जैन नगरी में मुनादी पिटवा दो कि कल राज्यसभा में जैनधर्म और एकांतधर्म के बीच वाद-विवाद का आयोजन किया गया है, उसे सुनने के लिए समस्त नागरिकों को राजदरबार में आने की अनुमति है।
मंत्री : जैसी आज्ञा। राजा : बस, आज की सभा यहीं समाप्त होती है।