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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/३० जाता । हे सखी ! तू धैर्य रख, हिम्मत रख, अल्पकाल में ही तेरे दुखों का अन्त होगा, धर्मात्मा जीव पर दीर्घकालीन संकट नहीं रह सकता" - इस प्रकार धैर्य बँधाकर अंजना को सुलाने का प्रयास करने लगी, किन्तु उसकी आँखों में रंचमात्र भी निद्रा न थी, उसे एक रात्रि भी एक वर्ष के सदृश लगी।
वसंतमाला कभी उसे धैर्य दिलाती, कभी पैर दबाती- इस प्रकार जिस-तिस प्रकार उन्होंने रात्रि व्यतीत की।
प्रात:काल हो गया था, पक्षी चहुँओर कोलाहल करने लगे थे, सूर्यदेव उदित होने की तैयारी में थे। यहाँ दोनों सखियों ने सर्वप्रथम पंचपरमेष्ठी भगवंतों का स्मरण किया। तत्पश्चात् विह्वलता पूर्वक अंजना
सुन्दरी ने अपने पिता राजा महेन्द्र के महल की तरफ प्रस्थान किया, वसन्तमाला ने भी छाया की तरह अंजना का अनुसरण किया।
राजमहल के दरवाजे पर पहुंचकर जब दोनों ने अंदर प्रवेश करना चाहा तो द्वारपाल ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि दुख के कारण अंजना का रूप
ऐसा हो गया था कि द्वारपाल भी उसे पहिचानने में असमर्थ रहा।