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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/११ दूसरे सिंह की कहानी (जो ऋषभदेव का पुत्र होकर मोक्ष गया)
(जैनधर्म की कहानियों के प्रथम भाग में भी आपने एक सिंह की आत्मकथा पढ़ी थी, वह सिंह भगवान महावीर का जीव था। यहाँ दूसरे सिंह की बात है, यह जीव भरत चक्रवर्ती का जीव है। जब यह सिंह योनि में था, तब उसके ऊपर मुनिराज को भी वात्सल्य भाव आया था।
वाह, सम्यग्दृष्टि धर्मात्माओं के प्रति मुनियों को भी वात्सल्य भाव आता है। भरत चक्रवर्ती का जीव पूर्वभव में सिंह था, उससमय मुनिराज का आहार-दान देखकर वह बहुत आनंदित हुआ और उसीसमय जातिस्मरण ज्ञान हुआ, उसके बाद उसने वैराग्य प्राप्त कर संन्यास धारण किया, उसी समय मुनिराज ने एक राजा से उसकी सेवा करने के लिए कहा था। उसकी कहानी पुराणों में आती है। वह कहानी इसप्रकार है -)
भगवान ऋषभदेव का जीव पूर्व में वज्रजंघ राजा था, उस भव में उसने मुनियों को आहार-दान दिया था, तब अति विनम्रभाव से उसने मुनियों से पूछा- “हे नाथ ! यह मतिवर मंत्री वगैरह मुझे मेरे भाई के समान प्रिय लगते हैं। इसलिए आप कृपा करके उनके पूर्वभव का वृत्तान्त बताइये।"
तब मुनिराज ने कहा- "हे राजन् ! सुनो, यह मतिवर मंत्री का जीव पूर्वभव में विदेहक्षेत्र में एक पर्वत के ऊपर सिंह था। एक बार वहाँ