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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/१२ का राजा प्रीतिवर्धन उस पर्वत पर आया और वहाँ पिहितास्रव नाम के मुनि को विधिपूर्वक आहार-दान कराया। सिंह (मतिवर मंत्री के जीव अथवा भरत चक्रवर्ती के जीव) को यह देखकर जातिस्मरण ज्ञान हुआ, उससे वह सिंह अतिशय शान्त हो गया, फिर मुनिराज के उपदेश से उसने व्रत धारण करके संन्यास-मरण (समाधि-मरण) अंगीकार किया।".
जब मुनिराज पिहिताम्रप ने उस्. सिंह के समाधि-मरण की सारी बात जान ली, तब राजा प्रीतिवर्धन से कहा- “हे राजन् ! इस पर्वत पर एक सिंह श्रावक व्रत धारण करके समाधि-मरण कर रहा है, वह निकट मोक्षगामी है, इसलिए तुम्हें उसकी सेवा करना योग्य है । वह सिंह का जीव अल्प भव में भरत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर का पुत्र भरत चक्रवर्ती होकर उस ही भव में मोक्ष प्राप्त करेगा।"
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मुनिराज के वचन सुनकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने मुनिराज के साथ जाकर उस वैरागी सिंह को देखा। फिर राजा ने उसकी सेवा तथा समाधि में यथायोग्य सहायता की। “यह सिंह का जीत देव होकर, मोक्ष को जातेगा" - ऐसा समझकर मुनिराज ने भी उसके कान में णमोकार मंत्र सुनाया।