________________ योगबिंदु 293 आनंद की उपलब्धि होने पर उसका कभी भी अन्त नहीं आता / और पांचवां 'ब्रह्मस्वरूप' विशेषण बताता है कि वह आनंद परमात्मा के दर्शन जैसा है, याने परमात्मा का साक्षात्कार जैसा है, परमात्मस्वरूप है // 506 / / सद्गोचरादिसंशुद्धिरेषाऽऽलोच्येह धीधनैः / साध्वी चेत् प्रतिपत्तव्या, विद्वत्ताफलकाङ्क्षिभिः / / 507 // अर्थ : बुद्धि ही है धन जिनका ऐसे तथा विद्वत्ताफल के आकांक्षी सज्जनों को, यह (योग) सद्गोचरादि संशुद्धि से युक्त है या नहीं उसका विवेकपूर्वक पर्यालोचन करना चाहिये / यदि वह (सद्गोचरादि की संशुद्धि-बुद्धिगम्य) संगत है तो उसे अंगीकार करना चाहिये // 507|| विवेचन : 'धी धनैः' और 'विद्वत्ताफलाकांक्षिभिः' ये दो विशेषण देकर ग्रंथकर्ता बुद्धिमान सज्जनों की और संकेत करते हैं कि जिनको बुद्धि ही सब से बड़ी सम्पत्ति लगती है और जो विद्वता के फल को चाहने वाले है, ऐसे बुद्धिजीवी सज्जनों को यह योग मार्ग सद्गोचर - तीर्थंकर, गणधर, केवली आदि महापुरुषों द्वारा उपदिष्ट आगमशास्त्रों का सम्यक् प्रकार से अभ्यास करके, सर्व द्रव्यरूप पदार्थों में द्रव्याथिकनय से जिसकी नित्यता और पर्यायाथिकनय से पारिणामिकभाव की अनित्यता रही हुई है। उसका अनुभूत सत्य ज्ञान ही गोचरता कही जाती है। सर्वभोक्त न्याययुक्ति से पूर्ण, स्याद्वाद सिद्धान्तानुसार शुद्ध ऐसी सद्गोचर संशुद्धि की विवेक पूर्वक बुद्धियुक्त परीक्षा कर लेनी चाहिये / सद्गोचरादिसंशुद्धि से तात्पर्य सत्-तत्त्व जो जिनश्वरोक्त हो और उसके ज्ञान से तथा योगाभ्यास से प्राप्त होने वाली संशुद्धि द्वारा मोक्ष सुख की तलाश कर लेनी चाहिये / और अगर वह मार्ग-रीति संगत-बुद्धिगम्य लगे तो उसको स्वीकार करना चाहिये / ग्रंथकर्ता ने हमेशा मनुष्य के बुद्धि स्वातन्त्र्य पर जोर दिया है / वह चाहते हैं कि किसी भी तथ्य को हम पूर्ण रूप से तभी जीवन में दृढ़रूप से उतार सकते हैं, जो सर्वप्रथम हमारी बुद्धि की कसौटी पर खरा उतर चुका हो / बुद्धि-कसौटी पर खरा उतरने पर फिर उसे कोई भी शक्ति उखाड़ नहीं सकती // 507 // विद्वत्तायाः फलं नान्यत्, सद्योगाभ्यासतः परम् / तथा च शास्त्रसंसार, उक्तो विमलबुद्धिभिः // 508 // अर्थ : विद्वत्ता का श्रेष्ठ फल सद्योग के अभ्यास के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं / क्योंकि निर्मलबुद्धि महापुरुषों ने (बिना सद्योग के अभ्यास के) शास्त्र को भी (एक प्रकार का) संसार कहा है // 508 // विवेचन : कर्ममल क्षय होने से जिनकी बुद्धि निर्मल हो चुकी है, ऐसे केवलज्ञानी महापुरुषों