________________ योगबिंदु 285 क्योंकि (ऐसे) योग के अभ्यास से वह (भवावह परिणाम-क्लिष्ट परिणाम जो संसार का हेतु रूप परिणाम है) जीता जाता है // 492 / / विवेचन : अध्यात्मादि योग के अभ्यास से तथाप्रकार के कर्मों का क्षय और उपशम भाव प्रकट होता है और वैसे क्षयोपशम से आत्मा से कर्मदल के संयोग का जितने अंश में नाश होता है, उतने अंश में आत्मा शुद्ध, शुद्धतर, शुद्धतम अवस्था को प्राप्त करती है। उत्तरोत्तरशुद्धिरूप अवस्था को प्राप्त करने वाला ही वास्तव में मुख्य योग यहाँ अभिप्रेत है। क्योंकि ऐसे योग से ही वे क्लिष्ट परिणाम जीते जा सकते हैं जो संसार हेतु हैं // 492 // ततस्तथा तु साध्वेव, तदवस्थान्तरं परम् / तदेव तात्त्विकी मुक्तिः, स्यात् तदन्यवियोगतः // 493 // अर्थ : उससे (श्रेष्ठ योग के अभ्यास से) वह (आत्मा) श्रेष्ठ अवस्थान्तर को प्राप्त करती है, और कर्म के सर्वथा वियोग से वही वास्तविक मुक्ति है // 493 // विवेचन : अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता आदि श्रेष्ठ योग के अभ्यास से क्रमशः उत्तरोत्तर श्रेष्ठ गुणस्थानको की प्राप्ति के क्रम द्वारा श्रेष्ठ, श्रेष्ठतर, श्रेष्ठतम अवस्थान्तरों को प्राप्त करके, आत्मा जब कर्म संयोग का सर्वथा नाश कर देती है, तब वह मुक्तात्मा कही जाती है। अन्य कर्म का सर्वथा वियोग ही वास्तविक मुक्ति है / जब सर्व पौगलिक सम्बंधों का वियोग हो जाता है और अनन्तज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्यरूप अपने सहजगुणों से आत्मा स्वस्वरूप का भोक्ता होती है तभी वह वास्तविक मुक्ति को उपलब्ध होती है / जैन ऐसी मुक्ति को मानते है, परन्तु सांख्य, अद्वैत, वेदान्ती और नैयायिकों की "अपनी अवस्था में आ जाना ही मात्र मुक्ति" ऐसी मुक्ति और बौद्धों की "आत्मा की क्षण सन्तानरूप परम्परा का सर्वथा उच्छेदरूप" मुक्ति हमें मान्य नहीं / लेकिन आत्मा का सहजभाव-शुद्धतामय स्वरूप को उपलब्ध होना, निरावरण भाव से प्रकट करना ही वास्तव में परम मुक्ति है। श्रेष्ठ योग के अभ्यास से प्रथम अविरत सम्यक्दृष्टि गुणस्थान फिर देशविरति, फिर सर्वविरति प्रमत्त, अप्रमत्त गुणस्थानक, अपूर्वकरण, अनिवृति करण, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात आदि गुणस्थानक रूप श्रेष्ठ अवस्थाओं को प्राप्त करके, कर्म के सर्वथा वियोग से उत्पन्न मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है // 493 / / अत एव च निर्दिष्टं, नामास्यास्तत्त्ववेदिभिः / वियोगोऽविद्यया बुद्धिः, कृत्स्नकर्मक्षयस्तथा // 494 // अर्थ : इसीलिये तत्त्ववेत्ताओं ने 'अविद्यावियोग' 'बुद्धि' तथा 'सर्वकर्मक्षय' (ऐसे अनेक) नाम मुक्ति के लिये निर्दिष्ट किये हैं // 494 / /