________________ 276 योगबिंदु और बोधगम्य यह पद्धति है, इसके लिये नैरात्म्यभावना की कल्पना की जरुरत नहीं, वैराग्य से ही सब सिद्ध हो जाता है। परन्तु यह वैराग्य आत्मा को कथंचिद् नित्य मानने से संभव है। अद्वैतवादियों की भांति आत्मा को एकान्त नित्य और तुम बौद्धों की भांति एकान्त अनित्य मानने से मोक्षहेतु सिद्ध नहीं होता। परन्तु द्रव्यत्वरूप से आत्मा को नित्य और पर्यायत्वरूप से अनित्य मानने से सब सिद्ध होता है // 476 / / बोधमात्रेऽद्वये तत्त्वे, कल्पिते सति कर्मणि / कथं सदाऽस्या भावादि, नेति सम्यग्विचिन्त्यताम् // 477 // अर्थ : आत्मा को एकान्त बोध मात्र एक तत्त्व मानने पर, कर्म कल्पित होगा और ऐसे इसकी (मोक्ष की) सर्वदा सत्ता कैसे होगी? इस पर सम्यक् विचार करना चाहिये // 477|| विवेचन : ज्ञानवादी बौद्धों का मानना है कि आत्मा ज्ञान-स्वरूप है और वह भी क्षणिक ज्ञान धारामय है, दूसरी किसी भी वस्तु का जगत में सद्भाव नहीं / इस प्रकार आत्मा को मात्र ज्ञानस्वरूप मानने से आत्मभिन्न कर्म नाम की वस्तु की कोई सत्ता ही नहीं रहेगी। आप स्वयं ही मानते है कि शुभा-शुभ कर्म-क्रिया के योग से जीव सुख-दुःख का अनुभव करता है / आपका यह कथन भी कल्पना मात्र रह जायेगा / तुम्हारे सिद्धान्त में कहा भी है : चित्तमेव हि संसारो, रागादिक्लेशवासितम् / तदैव तैर्विनिमुक्तं, भवान्त इति कथ्यते // चित्त ही संसार है क्योंकि राग द्वेषादि क्लेशों से युक्त है, ऐसे चित्त से जो मुक्त है वही मुक्त है / और ऐसा जो आप कहते है वह क्षणिक ज्ञान स्वरूप आत्मा को स्वीकार करें तो दूसरे क्षण में उसका अभाव होने से संसार में कौन जाये और मोक्ष में कौन जाये ? यह विचारणीय है। दूसरा प्रश्न यह उठता है कि जो मुक्त हो वह अगर नित्य रहे तो आप का क्षणिक सिद्धान्त खण्डितनष्ट हो जाता है और अगर उस मुक्तात्मा को क्षणिक मान ले तो संसार भ्रमण पुनः-पुनः चालु रहेगा। इस प्रकार यदि आत्मा की क्षणिकता मानी जाय तो आत्ममुक्ति सर्वदा कैसे रहेगी ? उसका विचार तुम को अवश्य करना चाहिये, क्योंकि 'न सतो विद्यतेऽभाव; नाभावो विद्यते सतः / ' अर्थात् जो सत्पदार्थ है उसका कभी अभाव नहीं हो सकता और जो अभाव असद् पदार्थ है उसकी सत्ता कभी नहीं हो सकती / इसलिये कहा जाता है कि : नित्यं सत्त्वमसत्त्वं वाऽहेतोरन्यानपेक्षणात् / अपेक्षातो हि भावानां, कादाचित्कत्वसंभवः // जो पदार्थ नित्य सद् अथवा असद् है, उसकी सत्ता या अभाव को उत्पन्न करने के लिये