________________ योगबिंदु 271 धारा-परम्परा है - वही अन्वय-सम्बंध है / वह अन्वय-अनुवृत्ति जो पूर्व पर्याय को उत्तर कालीन पर्याय से जोड़ती है द्रव्यत्वरूप से कही जाती है और वह कथंचिद् नित्य है / और वह अनुवृत्ति ही पूर्व और उत्तरपदार्थरूप पर्यायों में अनन्तर - व्यवधान बिना गमन करती है, अर्थात् उत्तरपदार्थ की उत्पत्ति करती है / कारण कार्य को उत्पन्न करता है। जैसा कारण होता है वैसा कार्य होता है। जब कारण कथंचिद् नित्य है तो उसका कार्य भी वैसा ही होता है / उसे कौन निवारण कर सकता है? कार्य-कारण सम्बंध को कौन रोक सकता है ? इसलिये द्रव्यरूप से पदार्थ को कथंचिद् नित्य मानना ही चाहिये / तुम पदार्थ को जो एकान्त क्षणिक मानते हो तो वह क्षणिक पदार्थ कैसे स्वभाव के है ? क्षणिक के भी तीन स्वभाव होते है :- स्वनिवृत्ति स्वभाववाला, अन्य को उत्पन्न करनेवाला और उभयस्वभाव वाला / स्वनिवृत्ति याने स्वयं अपना नाश करने वाले स्वभाव वाला, उत्तरकालीन पदार्थ को उत्पन्न करने वाला और दोनों स्वरूप वाला इस प्रकार क्षणिकत्व के तीन स्वभाव होते हैं // 469 // स्वनिवृत्तिस्वभावत्वे क्षणस्य नापरोदयः / अन्यजन्मस्वभावत्वे स्वनिवृत्तिरसङ्गता // 470 // अर्थ : क्षण का स्वनिवृत्तिस्वभाव मानने पर अन्योत्पत्ति नहीं हो सकती और अन्य उत्पादक स्वभाव मानने पर स्वनिवृत्ति असंगत होती है / / 470|| विवेचन : अगर आप ऐसा मानते हैं कि क्षणिक पदार्थ स्वयं अपना नाश करने के स्वभाव वाला है, तो वह दूसरे क्षण में जो उत्पन्न होने वाला है उसका जनक कैसे हो सकता है ? क्योंकि अपने नाश कार्य में व्यग्र होने वाला क्षण अन्य को उत्पन्न करने में समर्थ कैसे हो सकता है ? इसलिये स्वनिवृत्ति स्वभावी क्षणिक स्वभाव अन्य का जनक नहीं हो सकता। अगर दूसरा विकल्प मानो जो अन्य को उत्पन्न करने के स्वभाव वाला क्षणिक है तो वह भी आप की युक्ति से घटित नहीं होता क्योंकि क्षणिक पदार्थों में पूर्वकालीनता ही उत्तरकालीन पदार्थों को जन्म देने में उपादान कारण होने का स्वभाव धारण करती है, और वह स्वनिवृत्तिस्वभाव वाले क्षणिक पदार्थों में होता नहीं है / तो इस प्रकार तुम्हारे स्वनिवृत्ति स्वभाव का ही खण्डन हो जाता है / इसलिये क्षणिकत्व स्वभाव घटित नहीं होता, क्योंकि क्षणिकत्व और अन्य जननत्व दोनों एकस्थान में कैसे रह सकते हैं // 470|| इत्थं द्वयैकभावत्वे, न विरुद्धोऽन्वयोऽपि हि / व्यावृत्त्याद्येकभावत्वयोगतो भाव्यतामिदम् // 471 // अर्थ : इस प्रकार एक पदार्थ में दो स्वभाव मानने पर अन्वय सम्बंध भी यथार्थ घटित होता है। पूर्व पर्याय की व्यावृत्ति और अन्य पर्याय की उत्पत्ति में एक पदार्थ का योग होने से यह (अन्वय सम्बंध) विचार करना चाहिये // 471 //