________________ 270 योगबिंदु सर्वथा अभाव माने, तो वह लोक में कभी भी संभव नहीं / उसी प्रकार तुम्हारा तत्त्वचिंतन भी संभव नहीं, व्यर्थ है // 466-467 // क्षणिकत्वं तु नैवास्य, क्षणादूर्ध्वं विनाशतः / अन्यस्याभावतोऽसिद्धेरन्यथाऽन्वयभावतः // 468 // अर्थ : इस (आत्मा) का क्षणिकत्व भी घटित नहीं होता (क्योंकि) क्षण के पश्चात् उसका विनाश होता है अर्थात् उत्तरक्षण के साथ उसका योग नहीं होता। अन्य पूर्वक्षण के अभाव से उत्तरक्षण संभव नहीं, अत: एक दूसरे के अन्वय-सम्बंध का अभाव है // 468 // विवेचन : बौद्धों को क्षणिकवादी कहा है, क्योंकि वे मानते हैं कि जगत के सर्व पदार्थ क्षणमात्र स्थायी है / परन्तु आत्मा का क्षणिकत्व घटित होता नहीं है, क्योंकि क्षण के पश्चात् उसका विनाश है; उत्तर क्षण के साथ उसका अन्वय-सम्बंध नहीं बनता / जैसे वंध्या का पुत्र असिद्ध है उसी प्रकार आत्मादि द्रव्य क्षणस्थायी माने तो अन्वय-सम्बंध न घटित होने से क्षणिकत्व भी असिद्ध होता है। अगर भाव से भाव की सिद्धि स्वीकार की जाए तो पूर्वभाव में अर्थात् पदार्थ में उत्तर कालीन पदार्थों का अन्वय, अनुक्रम से गुण पर्याय की अनुवृत्ति 'द्रव्य में कथंचिद् नित्यत्व' स्वीकार करने से ही सिद्ध हो सकती है / याने कार्यरूप और कारणरूप से पर्यायत्वभाव घटित होता है। परन्तु पदार्थ में एकान्तरूप से क्षणक्षयित्व मानने से यह संभव नहीं / अतः एकान्तरूप से आत्मादि द्रव्यों को एकक्षण में उत्पन्न होकर दूसरे क्षण में सर्वथा नाश होने वाला माने, तो कारण के अभाव में उत्तरक्षण में पदार्थ की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? अगर तुम बौद्धलोग ऐसा मानते हो कि 'भावादेव भावसिद्धिः' पूर्वक्षण का जो विनाश है वही उत्तरक्षण की उत्पत्ति है तो पूर्व क्षण पदार्थों में उत्तरक्षण में उत्पन्न पदार्थों का कार्य-कारणरूप पूर्वपर्याय रूप पदार्थों में और उत्तरकाल में होने वाले पदार्थों में रहने वाला कोई नित्य पदार्थ है जो दोनों का अन्वय-सम्बंध करवाता है / इस प्रकार मानने से तुम को जबरदस्ती भी आत्मादि पदार्थों की सिद्धि माननी पड़ती है // 468 // भावाऽविच्छेद एवायमन्वयो गीयते यतः / स चानन्तरभावित्वे, हेतोरस्यानिवारितः // 469 // अर्थ : क्योंकि भाव का अविच्छेद ही अन्वय-सम्बंध नाम से प्रसिद्ध है और वह (अन्वय) पूर्वपदार्थ को उत्तरपदार्थ से जोड़ने में व्यवधान रहित सिद्ध-हेतु है, उसको कोई रोक नहीं सकता // 469 // विवेचन : टीकाकार ने भावाविच्छेद का अर्थ बताया है "सदृपतावित्रुटनमेव भावाविच्छेद" अर्थात् पदार्थों के अन्दर रहने वाली, पर्यायों को कभी भी न टूटनेवाली, सदा रहनेवाली अविच्छिन्न