________________ योगबिंदु 269 विवेचन : आत्मा का सर्वथा अभाव मानने पर 'आत्मा नहीं है' इस प्रकार का तुम्हारा नैरात्म्यदर्शन का अनुभव किसको हुआ? इस निरात्मदर्शन का प्रतिपादन करने वाला कौन हुआ? और आत्माभाव रूप अति तुच्छ वस्तु का प्रतिपाद्य विषय भी क्या हुआ / कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आत्मा जैसी कोई वस्तु ही नहीं, तो उसका दर्शन, प्रतिपादन सब व्यर्थ है। यदि तुमने उस अभाववस्तु का भी प्रतिपादन किया है तो 'आत्माभाव है' ऐसा करते ही इस अभाव का ज्ञाताआत्मा भावरूप से प्रतिपादित हो गया / जब आत्मा, जैसी कोई वस्तु ही नही है; आत्मा का सर्वथा अभाव है; तो 'आत्मा नहीं है' इस प्रकार का अनुभव किसको हुआ ? उस "आत्मा नही है" का प्रतिपादन करने वाला कौन हुआ ? और उस 'आत्मा नही हैं' का विषय क्या हुआ ? कुछ भी नहीं // 465 // कुमारी सुतजन्मादिस्वप्नबुद्धिसमोदिता / भ्रान्तिः सर्वेयमिति चेन्ननु सा धर्म एव हि // 466 // कुमार्या भाव एवेह, येदेतदुपपद्यते / वन्ध्यापुत्रस्य लोकेऽस्मिन्न जातु स्वप्नदर्शनम् // 467 // अर्थ : ये सब कुमारी के पुत्र जन्मादि के स्वप्न के समान पैदा हुई भ्रांति मात्र है / यदि ऐसा (कहो तो उचित नहीं क्योंकि) वह भ्रांति नहीं (कुमारी का) धर्म है / कुमारी का भाव मानने पर यह सब (स्वप्न दर्शनादि) घटित हो जाता है परन्तु वंध्यापुत्र का स्वप्नदर्शन इस लोक में कभी नहीं होता // 466-467 // विवेचन : बौद्धों का कहना है कि नैरात्म्यदर्शन किसको ? इसका प्रतिपादक कौन और आत्मा के अभाव में प्रतिपाद्य क्या ? इत्यादि ये सब धर्मचिन्ता तो कुमारी को पुत्र जन्म के स्वप्न के समान भ्रांति मात्र है, वास्तविक नहीं है। रात को स्वप्न में वह पुत्र जन्म का स्वप्न देखती है और हर्षविभोर हो जाती है, परन्तु प्रात: उठने पर कुछ नहीं होता, केवल मानसिक भ्रांतिमात्र होता है। इसी प्रकार यह सब आत्मा भाव का प्रतिपाद्य-प्रतिपादक आदि की धर्म चिन्ता भ्राँति मात्र है। बौद्धों को इसका उत्तर देते हुये कहते हैं कि तुम्हारा यह दृष्टान्त यहाँ पर नहीं घटित होता, क्योंकि यह कुमारी का स्वप्न भ्रांति मात्र नही; उसका भावी धर्म है; भावी के विचार मूर्त रूप लेकर, प्रत्यक्ष स्वप्न में आ जाते है क्योंकि भविष्य में वह सब होने वाला है / अभी हाल में वह धर्म सत्ता में पड़ा हुआ है, प्रकट नहीं हुआ / कुमारी भाव मानने पर ही यह स्वप्नदर्शन रूप सब धर्म घटित होता है / वंध्या पुत्र का स्वप्न लोक में किसी को नहीं आता अर्थात् कुमारी के समान कोई आत्मा नाम की वस्तु अवस्थित है ऐसे आत्मभाव को स्वीकार करने पर ही यह सब तत्त्वचिन्ता आदि पुत्रजन्मादि स्वप्न के समान कल्पित कर सकते हैं / परन्तु वन्ध्या पुत्र के समान यदि आत्मा का