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अभ्यास करना ही भावनायोग है । यह अभ्यास अरुचि, खेद, प्रमाद आदि दोषों से रहित होता है। इस प्रकार के अभ्यास से अशुभाभ्यास की निवृत्ति, शुभाभ्यास की अनुकूलता, शुभोत्कर्ष-रूप भावना की वृद्धि होती है। ध्यानयोग :
_उत्तम भावना से युक्त, रागद्वेषात्मक अध्यवसायों को छोड़कर, चंचलता का त्याग करके वीतराग परमात्मा को ही हृदयकमल में प्रतिबिम्बित करके, स्थिर दीपक की धारा की भांति मन को स्थिर करना, एकाग्र करना, आत्मा का अत्यन्त सूक्ष्म उपयोग रखना ही ध्यान है । ऐसे ध्यान से सर्वत्र वशिता, मन की स्थिरता, संसार का व्यवच्छेद रूप फल की प्राप्ति होती है। समतायोग :
अविद्या के कारण इष्टानिष्ट कल्पनाओं को सम्यक् ज्ञान के बल से दूर करने से जो समभाव पैदा होता है उसे समतायोग कहते हैं । ऐसे समतायोग से ऋद्धि के प्रति अप्रवृत्ति, सूक्ष्म कर्मों का क्षय और अपेक्षा तन्तु का विच्छेद जैसे फल प्राप्त होते हैं । वृत्तिसंक्षययोग :
आत्मा का सहज स्वभाव निस्तरंग स्वयंभू-रमण-समुद्र जैसा गंभीर होता है । किन्तु अनादिकाल से मन-शरीर-कर्मवर्गणा आदि के कारण आत्मा के अन्दर नाना प्रकार की राग-द्वेष की संकल्प-विकल्पात्मक वृत्तियों का जन्म होता है । ऐसी सभी वृत्तियों का अपुनर्भावरूप से नाश होने पर आत्मा विशुद्ध दशा को प्राप्त होता है । इस प्रकार उन सर्व वृत्तियों का सर्वथा क्षय हो जाने को वृत्तिसंक्षय कहते हैं । वृत्ति-संक्षय से केवलज्ञान, शैलेशीकरणपद की प्राप्ति और सदानन्ददायिनी अनाबाधित मोक्षप्राप्ति होती है। अन्त में आचार्यश्री ने सास्रव योग, अनास्रव योग जैसे भेद भी किये हैं। अध्यात्मयोग और वृत्तिसंक्षय योग का विशेष कथन :
औचित्य आदि गुणों से युक्त तत्त्व स्वरूप का चिन्तन करना अध्यात्मयोग है और यह अवस्थादि भेद से अनेक प्रकार का माना गया है। यथा जप को अध्यात्मयोग माना है । मंत्र का बार-बार परावर्तन, देवता का स्तवन आदि जाप है । अकलुषित मन से जाप करने से चित्त प्रसन्न होता है। यत्नपूर्वक शुभ अभिग्रह धारण करना, निज योग्यता का सम्यक् प्रकार से पर्यालोचन करना, धर्म में प्रवृत्ति करना और आत्मसंप्रेक्षण करना भी अध्यात्मयोग है । अध्यात्मयोग भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है । कुछ आचार्य सम्यक् प्रकार से किये गए देव-गुरु वन्दन को, प्रतिक्रमण को और सभी प्राणियों में मैत्र्यादिभाव के चिन्तन को अध्यात्म कहते हैं । अन्त में आचार्यश्री ने समापन करते हुए कहा है कि आत्मा में अध्यात्मवृत्ति पैदा करने वाले अध्यात्म-योग को अनेक प्रकार का बताया है।