________________ 256 योगबिंदु अर्थ : हेय और उपादेय तत्त्व के उपाय का जो ज्ञाता है, वह वस्तुतः इष्ट है न कि सर्व को जानने वाला // 441 // विवेचन : सभी जीवों के आत्महित के लिये कौन सी वस्तु त्यागने योग्य है और कौन सी वस्तु काम में लेने योग्य है, इस प्रकार हेय-त्याज्य और उपादेय-आदरणीय तात्त्विक अनुष्ठानों के (आचरण करने के) विधि-विधान, उपाय और फल जिसमें बतायें हैं, ऐसे वेदरूपी ज्ञान का ज्ञाता, बुद्धिमान पुरुष ही हमारे मत में सर्वज्ञ है। क्योंकि उसी की आज्ञा से स्वहित प्रवृत्ति होती है, इसलिये उसे ही हम आप्त पुरुष कहते हैं / वह आप्त पुरुष ही हमारे मत में सर्वज्ञ इष्ट है, और ऐसे सर्वज्ञ को ही हम प्रमाण मानते हैं / परन्तु अन्य सर्वज्ञ जो सभी परोक्ष पदार्थों को जानता है, और हमें प्रत्यक्ष जानकारी की बाते करता है, वह जगत के सर्व पदार्थों का ज्ञान चमत्कारी भले ही हो और हमें आश्चर्य में डाल दे, परन्तु हमको वह सर्वज्ञ मान्य नहीं / हेय और उपादेय का उपदेश नहीं देने वाला सर्वज्ञ होने पर भी अपौरुषेय वेद का अज्ञ होने से अवेद असर्वज्ञ ही है / संसार के सभी पदार्थों के गुण धर्मों को न जानता हो, परन्तु अपौरुषेय वेद के परमार्थ को संपूर्ण जानता हो वह हमारे लिये सर्वज्ञ है / सर्वज्ञ याने वेदज्ञाता, वेदज्ञाता याने सर्वज्ञ हमें ऐसा अर्थ इष्ट है, सभी को जानने और देखने वाला सर्वज्ञ, ऐसा अर्थ हमें इष्ट नहीं // 441 // दूरं पश्यतु वा, मा वा, तत्त्वमिष्ट तु पश्यतु / प्रमाणं दूरदर्शी चेदेते गृध्रानुपस्महे // 442 // अर्थ : दूर देखे अथवा न देखे, परन्तु इष्ट तत्त्व को जो देखता है, वह सर्वज्ञ है / यदि दूरदर्शी को ही प्रमाण-सर्वज्ञ माने तो गिद्धों की उपासना करें // 442 / / विवेचन : दूर-दूर रही हुई वस्तु को और भूत-भावी कालीन पदार्थों को सर्वज्ञ देखे या न देखे, मीमांसक कुमारिल भट्ट कहते हैं कि इससे हमें कोई प्रयोजन नहीं / परन्तु इष्ट तत्त्व जो हमें प्रिय है ऐसे धर्म सम्बंधी अनुष्ठान जैसे यज्ञ याग कैसे करना? संध्या कैसे और कब करनी? गौमेध, अजमेध, अश्वमेध, नरमेध, प्रजापत्यमेध कब करना ? नदी-नान कब और कितनी बार करना? शारीरिक शुद्धि कैसी रखनी ? कैसा आहार लेना ? उसका काल-सम्बंधी ज्ञान, विधि सम्बंधी का ज्ञान, तप का ज्ञान, भक्ष्य-अभक्ष्य ज्ञान और हेय-उपादेयादि ज्ञान को जो यथास्वरूप जानता है उसी (सर्वतत्त्वों के ज्ञाता) को हम सर्वज्ञ मानते हैं / यदि दूर-दूर रही वस्तु को जानने और देखने वाले दूरदर्शी को ही तुम लोग सर्वज्ञ कहते हो, तो यह सर्वज्ञ का चिह्न लक्षण नहीं क्योंकि ऐसा तो गिद्ध जैसे पक्षियों में भी होता है। आकाश में सैकड़ों मील ऊँचे उड़ने वाला गिद्ध नामका पक्षी पृथ्वी पर रहे अपने खाद्य पदार्थ - मांस को इतनी दूरी से देख लेता है / इसलिये दूरदर्शीत्व को यदि सर्वज्ञत्व का चिह्न माना जाय तो गिद्धों की भी सर्वज्ञों की भांति उपासना करनी चाहिये /