________________ योगबिंदु 253 सामान्यवद् विशेषाणां, स्वभावो ज्ञेयभावतः / ज्ञायते स च साक्षत्त्वाद् विना विज्ञायते कथम् // 436 // अर्थ : सामान्य की भांति विशेष स्वभाव भी ज्ञेय-पदार्थों में जाना जाता है, बिना साक्षात्कार के वह (विशेष स्वभाव) कैसे जाना जाय ? // 436 / / / विवेचन : सभी पदार्थों में दो प्रकार के धर्म रहे हुये हैं- सामान्य और विशेष / जैसे सामान्य-महासत्ता, अस्तित्व, वस्तुत्व और परिणामित्व आदि स्वभाव सभी पदार्थों में व्यापक होता है। उसी प्रकार विशेष धर्म - जो धर्म एक को दूसरे से अलग कर दे, वह धर्म विशेष कहलाता है, जैसे घट, पट, पर्वत, राजा, मनुष्य, रत्न आदि / वह विशेष धर्म भी सभी पदार्थों में होता है। पदार्थों में रहे हुये इन दोनों स्वभावों के सहयोग से ही ज्ञाता को पदार्थ का "यह कुछ है", ऐसा सामान्यज्ञान और "यह पदार्थ अमुक रूप, गुण और स्वभाव वाला है", ऐसा विशेष ज्ञान, विशेष ज्ञेयत्व स्वभाव होने से होता है। जितना क्षयोपशम होता है उतना विशेष ज्ञान होता है। उसी प्रकार पदार्थों का ज्ञेयत्व स्वभाव होने से, सर्व आवरणरूप प्रतिबंधकों का जब सर्वथा अभाव होता है, तब केवली भगवान को सर्व पदार्थ साक्षात प्रत्यक्ष होते हैं। क्योंकि पदार्थों का वैसा विशेष ज्ञेयत्व स्वभाव है / लेकिन पदार्थों के गुण-पर्याय आदि में वैसा विशेष ज्ञेयत्व स्वभाव अगर न हो, तो ज्ञाता 'यह पदार्थ अमुक है, अमुक नहीं', यह विशेष ज्ञेयत्व स्वभाव कैसे अनुभव कर सकता है? इसलिये सर्व पदार्थों में सामान्य ज्ञेयत्व और विशेष ज्ञेयत्व स्वभाव होने से ही सभी सर्वज्ञ जीवों कों सर्व आवरणों के अभाव में, देश और काल के प्रतिबंध के बिना ही ज्ञान हो जाता है / अतः पदार्थों में सामान्य ज्ञेयत्व और विशेष ज्ञेयत्व स्वभाव सभी दर्शनकारों को मान्य है // 436 / / अतोऽयं ज्ञस्वभावत्वात्, सर्वज्ञः स्यान्नियोगतः / नान्यथा ज्ञत्वमस्येति, सूक्ष्मबुद्ध्या निरूप्यताम् // 437 // अर्थ : इसलिये ज्ञानस्वभावत्व होने से यह (जीव) निःसन्देह-अवश्य सर्वज्ञ है, अन्यथा इसका ज्ञायत्व ही नष्ट हो जाय / इस बारे में गंभीर विचार करें // 437 // विवेचन : आत्मा का स्वभाव ज्ञान है / ज्ञान स्वभाव वाला होने से ही आत्मा विशेष पदार्थों का साक्षात बोध प्राप्त करती है / जब तक उसके ज्ञान का पूर्ण विकास न हुआ हो, तब तक आवरणों के कारण उसका अल्पविकसित ज्ञान मर्यादित होता है / परन्तु जब उस ज्ञेय स्वभाव का पूर्ण विकास हो जाता है, सभी आवरण और प्रतिबंधक कारण नष्ट हो जाते हैं, तब ज्ञेय स्वभावी सभी पदार्थों को, सर्वज्ञ अवश्य-निःसन्देह साक्षात देखता है, और जानता है। अगर आत्मा के सर्वज्ञत्व स्वभाव का हम इन्कार करते हैं-सर्वज्ञत्व को नहीं मानते, तो जीवात्मा का लक्षणरूप जो