________________ 252 योगबिंदु विवेचन : दृष्टान्त प्रायः एकदेशीय होते हैं। किसी एक धर्मविशेष को बताने के लिये दिये जाते हैं / यह दृष्टान्त भी एकदेशीय है और अग्नि के उष्णत्व धर्म विशेष को लेकर दिया गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे अग्नि में उष्णत्व धर्म रहता है और वह अग्नि अपने उष्णत्वधर्म को छोड़ नहीं सकती। उसी प्रकार आत्मा का धर्म स्वभाव ज्ञान है, वह अपने बोधत्व रूप ज्ञानधर्म को छोड़ नहीं सकती, ऐसा आंशिक साधर्म्य बताने के लिये ही यह दृष्टान्त दिया है। कोई भी दृष्टान्त सर्वदेशीय नहीं होता; सर्व अंशों से साधर्म्य सभी द्रव्यों में संभव नहीं है / कभी बांस के मूल आदि को अथवा दूरी के कारण किसी पदार्थ को अग्नि न जला सके तो इससे अग्नि का जो दाहक स्वभाव है, वह मिट जायेगा? उसका वह स्वभाव कभी नहीं मिट सकता। इसी प्रकार आत्मा में ज्ञातृत्वशक्ति है, परन्तु जब तक कर्मों के आवरण दूर नहीं होते, तब तक वस्तु स्वरूप का बोध नहीं होता / परन्तु इससे ऐसा नहीं कह सकते कि आत्मा में बोधत्वशक्ति ही नहीं है। जैसे आवरण बिना अग्नि जलाती है वैसे ही आवरण बिना आत्मा सभी पदार्थों को देखता और जानता है / इस प्रकार अग्नि में दाहकत्व और आत्मा में ज्ञातृत्वरूप साधर्म्य को बताने के लिये ही यह दृष्टान्त दिया है, वह इसका बाधक नहीं हो सकता / केवलज्ञान सर्वपदार्थों के सर्व पर्यायों को ज्ञात करने वाला है, उसमे कोई भी आवरण, देश का या काल का, बाधक नहीं बन सकता // 434|| सर्वत्र सर्वसामान्यज्ञानाज्ज्ञेयत्वसिद्धितः / तस्याखिलविशेषेषु, तदेतत्र्यायसङ्गतम् // 435 // अर्थ : सर्वसामान्य ज्ञान से ज्ञेय सिद्धि होती है, तो सभी विशेषों में उसका (केवली का) वह (केवलज्ञान) न्याययुक्त है // 435 // विवेचन : दूर या समीप अथवा भूत, भविष्य, वर्तमानकाल सम्बंधी सभी पदार्थों का सामान्यज्ञान, सामान्य ज्ञाता को उसकी शक्ति और योग्यतानुसार होता है / जैसे धुयें के अनुमान से अग्नि का ज्ञान होता है। कहा भी है :- "यो य: सामान्य ज्ञान विषयोऽर्थः स स कस्यचित् प्रत्यक्षो भवति यथा धूमाद अनुमीयमानोग्निः / सामान्य ज्ञानविषयाश्च सर्वे भावाः / तस्मात्ते कस्यचित्प्रत्यक्षा अपि-स्युरिति" / वैसे ही जिस आत्मा के प्रतिबंधककारण रूप कर्मावरण नष्ट हो गये हैं, वह केवली भगवान सभी पदार्थों का विशेष ज्ञान - सर्वगुण पर्याय सहित त्रिकालज्ञान प्राप्त करता है, यह युक्ति सिद्ध है। जब सामान्य व्यक्ति अपनी शक्ति और योग्यतानुसार सर्वसामान्य ज्ञान करने में समर्थ हैं, तो केवलज्ञानी सभी पदार्थों के विशेषज्ञान को जानने में क्यों समर्थ नहीं हो सकता? क्योंकि पदार्थमात्र ज्ञेय है, इसलिये जैसे सामान्य व्यक्ति को सर्वपदार्थों का सामान्य ज्ञान हो सकता है, वैसे ही सभी पदार्थों का विशेषज्ञान - केवलज्ञान केवलज्ञानी को सर्वत्र होता है यह तथ्य न्याय युक्त-युक्तिसिद्ध है // 435 / /