________________ 248 योगबिंदु जो अतीन्द्रिय पदार्थ है उसे प्रत्यक्षभाव से जानने वाला अथवा देखने वाला कोई आत्मा जगत में नहीं है और होने वाला भी नही है, परन्तु वेदवचनों को नित्य शाश्वत् मानकर, उन वचनानुसार जो पदार्थों को जानता और देखता है, वह सब को जानता और देखता है, याने वेद का ज्ञाता ही सर्वज्ञ है अन्य नहीं। अन्य सांख्यवादी और नैयायिक, मुक्तावस्था में अतीन्द्रिय पदार्थों के ज्ञानरूप केवलज्ञान का अभाव मानते हैं / वे मानते हैं कि मुक्तावस्था में ज्ञान में सहायक होने वाले इन्द्रिय और मन का आत्मा से वियोग हो जाता है इसलिये उसमें ज्ञान का अभाव होता है // 427|| चैतन्यमात्मनो रूपं, न च तज्ज्ञानतः पृथक् / युक्तितो युज्यतेऽन्ये तु, ततः केवलमाश्रिताः // 428 // अर्थ : चैतन्य आत्मा का स्वरूप है और वह (चैतन्य) ज्ञान से भिन्न नहीं, इसलिये जैनों का केवलज्ञान युक्ति से युक्त है // 428 / / विवेचन : हे सांख्यवादियों और मीमांसकों ! विचार तो करो कि चैतन्य जो है, वही आत्मा अथवा पुरुष का स्वरूप है। इसलिये आत्मा ज्ञान से भिन्न नहीं है / "चैतन्यं पुरुषस्य स्वरूपम्" यह वचन भी प्रमाण है / चैतन्य और आत्मा गुण और गुणी है इसलिये अभेद ही है। वह चैतन्य आत्मा से अलग हो ऐसी कोई युक्ति या प्रमाण नहीं है / अपितु अनुमान प्रमाण से विचारें तो चैतन्य ही ज्ञान और ज्ञान ही चैतन्य, ऐसा अभेद होने से जब घाती कर्मों का संपूर्ण क्षय हो जाता है तब तुरन्त सभी अतीन्द्रिय पदार्थों को और सभी द्रव्यों के भूत, भावी, वर्तमान गुण पर्यायों को साक्षात देखने वाला केवलज्ञान प्रकट होता है / उस आत्मा को केवल अघातीकर्मों का संग है इसलिये ऐसा ज्ञान संसार की अवस्था-सदेह होने पर भी होता है और मुक्तावस्था में भी होता है। इसलिये दोनों का परस्पर गुण और गुणी, आश्रय और आश्रयी का सम्बंध है // 428 // अस्मादतीन्द्रियज्ञप्तिस्ततः सद्देशनागमः / नान्यथा छिन्नमूलत्वादेतदन्यत्र दर्शितम् // 429 // अर्थ : इससे (केवलज्ञान से) अतीन्द्रियज्ञान होता है, फिर सद्देशनारूपी आगम का आविर्भाव होता है, अन्यथा तो मूल बिना यह (आगम) नहीं हो सकता / यह बात अन्यत्र दिखाई है / / 429 // विवेचन : इस प्रकार अध्यात्मादि योग के सतत् अभ्यास से आत्मस्वरूप को शुद्ध करते हुये जब जीव सर्वघाती कर्मों का सर्वथा क्षय करता है, तब केवलज्ञान प्रकट होता है और अतीन्द्रिय पदार्थों के सर्व गुण-पर्यायों को केवली भगवान अपने ज्ञान से प्रत्यक्ष देखते हैं / फिर सत्यदर्शन होने के पश्चात् वे केवली भगवान देशना-धर्मोपदेश देते हैं और आगमों की रचना होती है / अगर