________________ 219 योगबिंदु घाती-अघाती कर्मरूप अपाय को नाश करने वाले तीर्थंकरादि महापुरुषों ने कर्मों की ऐसी व्याख्या की है // 373 // कण्टकज्वरमोहैस्तु, समो विघ्नः प्रकीर्तितः / मोक्षमार्गप्रवृत्तानामत एवापरैरपि // 374 // अर्थ : इसीलिये (निरनुबंध योग के कारण ही) अन्य योगियों ने भी योगमार्ग के पथिकों के लिये (इसे) कंटक, ज्वर और मोह जैसा विघ्न बताया है // 374 // विवेचन : न केवल हमारे महापुरुषों ने निरनुबंध योग की ऐसी स्थिति बताई है / अन्य योगियों ने भी कहा है कि जैसे किसी ग्राम में पहुंचने के लिये, निकले हुये मुसाफिरों को मार्ग में कांटे, ज्वर, दिग्भ्रम आदि जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट विघ्न बाधक बनते हैं; कोई दिग्भ्रम होने से भटक जाता है; कोई कण्टकाकीर्ण मार्ग होने से विलम्ब से पहुंचता है और किसी को ज्वर अथवा शारीरिक व्याधि उत्पन्न होने से वापिस भी आ जाना पड़ता है, वैसे ही मोक्षमार्ग पर प्रवृत्त हुये योगियों को भी गाढ़ मिथ्यात्वरूप उत्कृष्ट मिथ्यात्वमोहनीय, मध्यम प्रकार का मिश्रमोहनीय और जघन्य प्रकार का सम्यक् मोहनीय रूप कर्म का उदय, जो तीन प्रकार का है वह अन्तराय करने वाला होता है। इन्हीं कर्मों के कारण कोई योगी लक्ष्यस्थान मोक्ष में विलम्ब से पहुंचता है, कुछ इस मार्ग से वापिस ही आ जाते हैं अर्थात् पतित हो जाते हैं और कुछ भटक भी जाते हैं / विघ्नानुसार उनकी गति होती है // 374 // अस्यैव सास्त्रवः प्रोक्तो, बहुजन्मान्तरावहः / पूर्वव्यावर्णितन्यायादेकजन्मा त्वनास्त्रवः // 375 // अर्थ : पूर्वोक्तानुसार इसी को (सापाय योगी के योग को ही) अनेक जन्मान्तरों को वहन करने वाला, सास्रवयोग कहते हैं, अनास्रवयोग तो एकजन्मा है // 375 // विवेचन : जिन योगियों को सापाय - विघ्नकारक मोहनीय, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय आदि घातीकर्मों की सत्ता और उदय लम्बे कालपर्यन्त, मोक्ष में विघ्नरूप होकर, उदय में आते हैं, वे योगी सापाय योगी कहे जाते हैं। ऐसे योगियों का योग आस्रव सहित होने से सास्रवयोग कहा जाता है / वह सास्रवयोग देव, मनुष्य, तिर्यञ्च, नरकादि चार गति, चौरासी के चक्कर में घूमाने वाला है। अनेक जन्म, जन्मान्तरों को देने वाला है, और वह भवभ्रमण करवाता है / यह बात पूर्व में निरूपक्रम कर्म, जो भोगे सिवाय छुटता नहीं, ऐसे (निकाचित कर्म को) कर्मरूप पाप के आस्रवों से युक्त होता है इसलिये सास्रव कहा जाता है। ऐसी आत्माओं का संसार दीर्घ होता है। परन्तु जिन योगियों को इस भव के सिवाय दूसरा कोई भव करने का नहीं होता; पूर्वोपार्जित शुभ