________________ 218 योगबिंदु के कारण संसार वृद्धि का ही कारण बनता है इसलिये बीच में ही टूट जाता है / जीव को मोक्ष पर्यन्त ले जाने में असमर्थ होता है / इसलिये महापुरुषों ने इसे अनुबंध रहित कहा है और उस व्यक्ति को सापाय कहा है। संक्षेप में अनपाय क्लिष्ट कर्म-रहित जीव का योग सानुबंध और क्लिष्ट कर्मसहित सापाय का योग अनुबंध रहित कहा है // 372 // अपायमाहुः कर्मैव, निरपायाः पुरातनम् / पापाशयकरं चित्रं, निरूपक्रमसंज्ञकम् // 373 // अर्थ : अपायरहित (सर्व कर्मों से मुक्त-केवलज्ञानी, तीर्थंकरादि) पुरुषों ने पुरातन (पूर्वकालोपार्जित) विचित्र कर्म को ही अपाय कहा है, जो पापवृत्ति का हेतु है और जिसका नाम निरूपक्रम है। अथवा अपायरहित (सर्वकर्मों से मुक्त) पुरुषों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के, पूर्वोपार्जित, पापप्रवृत्ति करवाने वाले निरूपक्रम संज्ञा वाले कर्म को ही अपाय कहा है // 373 / / विवेचन : यहाँ अपाय को कर्म कहा है, वास्तव में अपाय का अर्थ विघ्न होता है। हमारे इच्छित सुखों में विघ्न डालने वाले कर्म ही होते हैं, इसलिये यहाँ अपाय से कर्म के सिवाय और कुछ नहीं समझना / वह कर्म चित्र प्रकार का है-नाना प्रकार की प्रकृतियों वाला है, उसके मुख्य आठ भेद और अंसख्याता उनकी प्रकृतियां है / वह कर्म विचित्र प्रकार के अध्यवसायों से भिन्नभिन्न प्रकार से बांधा जाता है / कर्म ग्रथों में इसकी विचित्रता स्पष्ट है / पुरातन-अनादिकाल से कर्म बंध ते रहते हैं और छूटते रहते हैं इस प्रकार की परम्परा का कर्मचक्र चलता ही रहता है / वह कर्म पापाशयकर, मोक्षपथ के प्रतिकूल चित्तवृत्तियों को बढ़ाने वाला है अर्थात् दुष्ट अध्यवसायों को बढ़ाने वाला है- जो संसार के चौरासी के चक्कर में भटकाने, फंसाने में मुख्य हेतु है / निरूपक्रम संज्ञा से तात्पर्य निकाचित नामक कर्म से है। कर्म दो प्रकार के कहे हैं - सोपक्रम और निरूपक्रम / सोपक्रम, उपक्रम लगने से अर्थात् संक्रमकादि करण के योग से कर्म की स्थिति, प्रकृति और रस आदि में परिवर्तन हो जाता है, जैसा बांधा जाता है वैसा भोगा नहीं जाता, अर्थात् जो शुभ अथवा अशुभ कर्म किसी शुभ या अशुभ अध्यवाय या अनुष्टान द्वारा नष्ट हो जाता है वह कर्म सोपक्रम कर्म है। और जो कर्म अत्यन्त चिकने अध्यवसायों द्वारा गाढ़ रस पूर्वक बांधा गया हो; वह निकाचित कर्म ही निरूपक्रम है / जिसमें किसी भी उपक्रम का कोई असर नहीं पड़ता / भोगने के अलावा छूटता ही नहीं- नष्ट नहीं होता, वह निरूपक्रम कर्म है /