________________ योगबिंदु 211 है। मान से, मैं सब से महान् हूँ, इस प्रकार का झूठा अभिमान करके, कर्मबंध न करता है। माया से दूसरों को ठगने के लिये अपने आपको जैसा है, उसके विपरीत दिखाता है / इस प्रकार राग, द्वेष, विषय-कषायों की अशुभ प्रवृत्ति करने का उसे जो अभ्यास हो गया है, इस भावना के सतत पुनरावर्तन से अशुभ अभ्यास की निवृत्ति हो जाती है, उनका अभ्यास छूट जाता है। और शुभाभ्यास की अनुकूलता अर्थात् सम्यक्ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अभ्यास के अनुकूल चित्त की प्रवृत्ति होती है और उससे शुद्ध चित्त की वृद्धि होती है। यानि कषाय का अभाव, सन्तोष, सत्य, पवित्रता, मैत्री, प्रमोद, करुणा और मध्यस्थ आदि भावनाओं से चित्त में शुद्ध भावों की वृद्धि होती है / और वह उत्कृष्ट भावना मोहनीय कर्म के बल का नाश करती है और धर्म ध्यान में हेतु-समवाय कारण होती है। भावना का यह फल है। संक्षेप में भावना से अशुभ की निवृत्ति, शुभ की प्रवृत्ति और चित्त की शुद्धि होती हैं // 361 / / शुभैकालम्बनं चित्तं, ध्यानमाहुर्मनीषिणः / स्थिरप्रदीपसदृशं, सूक्ष्मयोगसमन्वितम् // 362 // अर्थ : शुभकालम्बन चित्त को मनीषी ध्यान कहते हैं / वह सूक्ष्म उपयोग से युक्त और स्थिर दीपक जैसा होता है // 362 // विवेचन : मनीषियों ने उत्तम भावना से युक्त, केवल शुभ-शुद्ध वीतराग परमात्मा को ही हृदयकमल में प्रतिबिम्बित करके, (राग द्वेषात्मक अध्यवसायों को छोड़कर, चंचलता को त्याग कर) स्थिर दीपक की धारा की भांति मन को स्थिर करना, एकाग्र करना और आत्मा के स्वरूप का अत्यन्त सूक्ष्म उपयोग रखना, उसे ध्यान कहा है। अर्थात् शुभैकालम्बनचित्त, मात्र शुभ आलम्बन ही सहारा है जिसका ऐसा जो चित्त अर्थात एक ही शुभ वस्तु पर चित्तवृत्ति की जो स्थिरता है उसे मनीषियों ने ध्यान कहा है। उसे निर्वातस्थिर दीपक की उपमा दी है। उसमें आत्मा का सूक्ष्म उपयोग रहता है // 382 / / वशिता चैव सर्वत्र, भावस्तैमित्यमेव च / अनुबन्धव्यवच्छेद उदर्कोऽस्येति तद्विदः // 363 // अर्थ : ध्यान को जानने वालों ने सर्वत्र वशिता, मन की स्थिरता और संसार व्यवच्छेद को ध्यान का फल कहा है // 363 / / विवेचन : ध्यान से दूसरों को जीतने की और आत्मवशिता-इन्द्रियों को जीतने की शक्ति प्राप्त होती है / ध्यान के बल से प्रकट हुई शक्ति से जो कार्य जब करने की इच्छा हो तब वह कार्य प्रकटरूप से सिद्ध कर सकता है / इस प्रकार सर्वकार्य उसके आधीन रहते हैं / ध्यानयोगी