________________ 204 योगबिंदु प्रकतेर्वाऽऽनगण्येन चित्रः सदभावसाधनः / गम्भीरोक्त्या मितश्चैव, शास्त्राध्ययनपूर्वकः // 348 // अर्थ : (जीवों की) प्रकृति अनुसार नाना प्रकार का, सद्भावों को पैदा करने वाला, गम्भीरोक्तियुक्त, परिमित और शास्त्रीयपाठों से युक्त उपदेश (महापुरुषों द्वारा दिया जाता है) // 348 / / विवेचन : भव्यात्माओं की जैसी योग्यता होती है; उनकी प्रकृति-स्वभाव को जानकर, ही महापुरुष उन्हें भिन्न-भिन्न कोटि का उपदेश देते हैं, जो उनमें शुद्ध-शुद्धत्तर भावोल्लासों को पैदा करने में पुष्टावलम्बनरूप बनता है / उनकी शैली-उपदेश की पद्धति इतनी गम्भीर, परिमितशब्दों से युक्त और शास्त्रीय उद्धरणों-प्रमाणों से समृद्ध होती है कि जीवात्माओं के अन्तस्तल में जाकर, स्थिर निवास बना लेती है / तात्पर्य यह है कि गीतार्थ-सर्वदर्शी-केवलज्ञानी महापुरुष जीवों की भिन्नभिन्न प्रकृति को लक्ष्य में रखकर, सद्भावों को पैदा करने वाला, गम्भीरोक्ति से युक्त, थोड़े शब्दों में शास्त्रीय प्रमाणों से समृद्ध उपदेश जीवों को देते हैं, जो जीवों की गुणवृद्धि और भाववृद्धि हेतुनिमित्त कारण बनता है / अतः उपदेश व्यर्थ नहीं, अपितु अनिवार्य है // 348 / / शिरोदकसमो भाव, आत्मन्येव व्यवस्थितः / प्रवृत्तिरस्य विज्ञेया, चाभिव्यक्तिस्ततस्ततः // 349 // अर्थ : शिरोदक की भांति शुद्धभावरूप परिणाम आत्मा को होता ही है, चित्र-नाना उपदेश और कूपखननादि से प्रवृत्ति तो इस (भाव) की अभिव्यक्ति है // 349 / / विवेचन : जैसे कएं के अन्तस्तल में जल की नीकों-झरणों में जल विद्यमान होता है; खोदने के पहले भी पानी की सत्ता-अस्तित्व होता है परन्तु बाहर दिखाई नहीं देता, खोदने पर पानी व्यक्त-अभिव्यक्त होता है। खोदने की प्रवृत्ति जल को प्रकट करती है अत: जैसे पानी की अभिव्यक्ति में खोदने की प्रवृत्ति हेतु-निमित्त बनती है, वैसे ही भव्यात्माओं के अन्दर शुद्ध भावरूप परिणामधारा विद्यमान होती है; भाव सत्ता में पड़े होते हैं, लेकिन महापुरुषों का नाना प्रकार का उपदेश उनके नाना भावों को अभिव्यक्त करने के लिये निमित्त बनता है, पुष्ठावलंबन बनता है, इसलिये उपदेश सार्थक है // 349 // सत्क्षयोपशमात् सर्वमनुष्ठानं शुभं मतम् / क्षीणसंसारचक्राणां, ग्रन्थिभेदादयं यतः // 350 // अर्थ : क्योंकि ग्रंथीभेद होने से जिनका संसारचक्र क्षीण हो चुका है ऐसे (सम्यक् दृष्टि) आत्माओं का सर्व अनुष्ठान, विशेष क्षयोपशमभाव प्रकट होने से, शुभ ही माना है // 350 //