________________ योगबिंदु 185 सांसिद्धिकं च सर्वेषामेतदाहुर्मनीषिणः / अन्ये नियतभावत्वादन्यथा न्यायवादिनः // 313 // अर्थ : जैन मनीषी सभी के इस स्वभाव को सांसिद्धिक कहते हैं; अन्य-नियतिवादी नियति से ही सब कुछ होता है ऐसा मानते हैं, और न्यायवादी इससे अन्यथा (सांसिद्धिक स्वभाव से अलग) मानते हैं। अथवा जैन मनीषी सभी के इस स्वभाव को सांसिद्धिक-सहज मानते हैं; अन्य-नियतिवादी नियति से और न्यायवादी इससे अन्यथा मानते हैं // 313|| विवेचन : जैन मनीषी मानते हैं कि जगत के सर्व पदार्थ अपने-अपने सांसिद्धिक-सहज निश्चित स्वभावानुसार विद्यमान हैं, अर्थात् प्रत्येक पदार्थ सहज तौर पर परिणामिक स्वभाव में स्वगुण पर्याय में विद्यमान है, परस्वभाव में जाता नहीं है। जैन प्रत्येक पदार्थ की स्वयोग्यता को स्वीकार करते हैं जो सांसिद्धिक-आत्मसमकालीन मानी गई है / अर्थात् जैन लोग सभी पदार्थों में सांसिद्धिक स्वभाव (योग्यता) को स्वीकार करते हैं / नियतिवादी जगत की उत्पत्ति में केवल नियति को ही कारण मानते हैं / वे मानते हैं कि नियति से ही सब कुछ होता है / जगत के पदार्थ एक नियति-निश्चित जो भावीभाव है उसके अनुसार ही प्रवृत्ति करते हैं / द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव भी उस भावीभाव के आधार पर निश्चित होता है। नियतिवादी के मत को टीकाकार ने ऐसा दिया है :- यद् यदा, तद् तदा, यद् यत्र, तत्-तत्र, यद्येन तत्तेन, यद् यस्य, तद् तस्य, यद् भवति, तद् भवति, यन्न भवति, तन्न भवति || जो जब होने वाला हो तभी होगा, अन्य काल में नहीं होता, जो वस्तु जिससे होने वाली हो उसी से बनती है, अन्य से नहीं। जिसके साथ सम्बंध होने वाला हो उसी से होता है अन्य से नहीं / इसी प्रकार शुभ-अशुभ जो भी जीव को प्राप्त होता है वह पहले निश्चित ही होता है, हजार उपाय करने पर भी वह अन्यथा नहीं होता / इस प्रकार वे नियति को ही बलवान मानते हैं। न्यायवादी इससे अन्यथा मानते हैं // 313 // सांसिद्धिकमदोऽप्येवमन्यथा नोपपद्यते / योगिनो वा विजानन्ति, किमस्थानग्रहणेन नः // 314 // अर्थ : यह (नियतिवाद) भी सांसिद्धिक ही है इससे अन्यथा सिद्ध नहीं होता अथवा योगी ही (इस विषय को) यथार्थ जानते हैं; हमारा कदाग्रह (इसमें) व्यर्थ है // 314 // विवेचन : नियतिवाद की सिद्धि भी आत्मा के सांसिद्धिक-तथाप्रकार के सहज स्वभाव